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#जीवन_आनन्द: कांटे ही सुरक्षा कवच होते हैं, सीख लो

कोरोना ने Life Style को बदल दिया है। सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक का टाईम टेबल परिवर्तित हो चुका है। व्यापार के नियम कायदे भी बदल रहे हैं। इस बीच कुछ को अवसर मिला है तो बहुत से लोग अवसाद में भी हैं। लेकिन क्यों ? Vikas Kumar Verma  जीवन प्रकृति से परे तो नहीं है! प्रकृति खुद बताती है कि ‘जीवन में छोटे से छोटे परिवर्तन’ के भी क्या मायने हैं। फिर हम छोटी-छोटी परेशानियों से घबरा क्यूं जाते हैं। दोस्तों, नमस्कार। ब्लाॅगवाणी के जीवन आनन्द काॅलम में आपका स्वागत है। मैं हूं आपके साथ विकास वर्मा। आईए, चर्चा करते हैं आज ब्लाॅगवाणी में ‘कांटों के सुरक्षा कवच’ की। क्योंकि गुलाब की तरह महकना है तो कांटों को ही सुरक्षा कवच बनाना होगा। जीवन में ‘बेर’ की सी मिठास चाहिए, तो कांटों को सुरक्षा कवच बनाईए। ग्वारपाठे से गुण चाहिए तो ‘कांटों को सुरक्षा कवच बनाईए। यानी कि जीवन में कांटों का सुरक्षा कवच हमें ‘VIP’ बनाता है। और ये कांटे होते हैं हमारी बाधाऐं, हमारी परेशानियां, हमारे दुखः। यह तो तय है कि जीवन में हरेक परेशानी एक नयी राह दिखाती है। जब भी हम परेशानियों से घिरते हैं तो खुद को और अधि...

#जीवन आनन्द: अतीत अवसाद बढ़ाता है और वर्तमान अवसर पैदा करता है

Vikas Kumar Verma  नमस्कार दोस्तों, ब्लाॅगवाणी पर #जीवन_आनन्द काॅलम में आप सभी का स्वागत है। मैं हूं आपके साथ विकास वर्मा। दोस्तों, जीवन में जब अतीत के पन्ने पलटे जाते हैं तो प्रेम कम और अवसाद ज्यादा पनपता है। यानी कि कई बार हम 8-10 साल पुरानी यादों की गठरी ढ़ोते रहते हैं, इस उम्मीद के साथ कि सामने वाले के अंहकार पर एक दिन जरूर चोट पहुंचेगी। लेकिन असल में हम अपने ही अंहकार को ढ़ो रहे होते हैं। क्योंकि असल में तो वर्तमान में जीने का नाम ही जिंदगी हैं, क्योंकि अतीत अवसाद बढ़ाता है और वर्तमान अवसर पैदा करता है। आईए, आज ब्लागवाणी के जीवन आनन्द के इस अंक में अतीत कि किताब को बंदकर आज की रोशनी में अवसर की राह तलाशें... दोस्तों, जीवन में जब अवसाद पनपनता है तो मन टूटने लगता है, अंधेरे कमरे में बैठना और एकांत अच्छा लगने लगता हैं। क्योंकि हम भूल जाते हैं कि जीवन केवल पेड़ नहीं है. जीवन गहरी छाया भी है. पेड़, जितना अपने लिए है, उतना ही दूसरे के लिए! हमारे सुख-दुख आपस में मिले हुए हैं. इनको अलग करते ही संकट बढ़ता है! जबकि इसे समझते ही सारे संकट आसानी से छोटे होते जाते हैं. सुलझते जाते हैं. लेकिन ...

'कॉकरोच' से डरती 'जिंदगी'

एक रेस्टोरेंट में अचानक ही एक कॉकरोच उड़ते हुए आया और एक महिला की कलाई पर बैठ गया। महिला भयभीत हो गयी और उछल-उछल कर चिल्लाने लगी…कॉकरोच…कॉकरोच… उसे इस तरह घबराया देख उसके साथ आये बाकी लोग भी पैनिक हो गए …इस आपाधापी में महिला ने एक बार तेजी से हाथ झटका और कॉकरोच उसकी कलाई से छटक कर उसके साथ ही आई एक दूसरी महिला के ऊपर जा गिरा। अब इस महिला के चिल्लाने की बारी थी…वो भी पहली महिला की तरह ही घबरा गयी और जोर-जोर से चिल्लाने लगी! दूर खड़ा वेटर ये सब देख रहा था, वह महिला की मदद के लिए उसके करीब पहुंचा कि तभी कॉकरोच उड़ कर उसी के कंधे पर जा बैठा। वेटर चुपचाप खड़ा रहा।  मानो उसे इससे कोई फर्क ही ना पड़ा, वह ध्यान से कॉकरोच की गतिविधियाँ देखने लगा और एक सही मौका देख कर उसने पास रखा नैपकिन पेपर उठाया और कॉकरोच को पकड़ कर बाहर फेंक दिया। मैं वहां बैठ कर कॉफ़ी पी रहा था और ये सब देखकर मेरे मन में एक सवाल आया….क्या उन महिलाओं के साथ जो कुछ भी हुआ उसके लिए वो कॉकरोच जिम्मेदार था? यदि हाँ, तो भला वो वेटर क्यों नहीं घबराया? बल्कि उसने तो बिना परेशान हुए पूरी सिचुएशन को पेर्फेक्ट्ली हैंडल किया। दरअसल, वो क...

Meaning of love...चल प्यार करें...

चैटिंग से सिर्फ सैटिंग होती है, प्यार नहीं। क्योंकि प्यार में फीलिंग होती है, इमोसंस होते हैं, दर्द होता है, चाहत होती है। ...और प्यार दिल से होता है !! चल प्यार करें... प्यार यानी Love  , आज इस शब्द के मायने क्या हैं? क्या प्यार का अर्थ (Meaning of love) वर्तमान में देह की चाहत, भूख, या हवस बन गया है ? अग़र नहीं, तो फिर ‘सुशांत’ जैसे नौजवान ‘शांत’ क्यों हो रहे हैं? क्यों ‘जिस्म’ में दौड़ता खून अपना रंग नहीं पहचान पा रहा है ? क्यों रिश्तों की डोर में ‘प्यार’ उलझता जा रहा है ?....अगर इन सब सवालों के जवाब आपके पास हैं तो बेशक आप इस आर्टिकल को बिना पढ़े यहीं छोड़ सकते हैं, लेकिन अग़र आपको इन सवालों का जवाब नहीं सूझ रहा है तो आपको यह आर्टिकल जरूर पढ़ना चाहिए। ...क्योंकि अखबारों में छपने वाली खबरें या कहानी ‘आपके घर की भी हो सकती है।’ चलिए अब इस Article  की शुरूआत करते हैं। 👀 केस -1. रविना की शादी को दो साल ही हुए थे, या यूं कहें कि जैसे तैसे रविना ने गुटखाबाज पति के साथ दो साल निकाल दिए थे। पति में सिवाय गुटखा खाने के कोई ऐब नहीं था। लेकिन रविना को शादी से पहले यह बात किसी ने नहीं ब...

नेता, जनप्रतिनिधि, भामाशाह !! छलावा बन रहे शब्द!

दोस्तों, कहीं सुना या पढ़ा तो होगा आपने भी कभी, कि ‘ये शब्द काटते हैं’। लेकिन यह समझ नहीं आया होगा कि कौनसे ‘शब्द’। चलिए मैं बताता हूं। लेकिन हां, अच्छा लगे तो इस आलेख को दूसरों के साथ साझा/शेयर जरूर कर देना। दोस्तों, कोरोना महामारी के बीच आए दिन अखबारों में, टीवी चैनलों पर सैकड़ों हजारों समाचार आपने पढ़ लिए होगें कि ‘फलां भामाशाह ने इतने रूपए दिए। फलां नेता, जनप्रतिनिधि या जनसेवक ने सीएम या पीएम फण्ड में दान दिया। कभी-कभी तो आपने ऐसे नेताओं की अस्पतालों में फल बांटते की तस्वीरें भी देखी होंगी। जिसमें एक ही आदमी को एक साथ चार -पांच लोग मिलकर एक केला या सेब भेंट करते हैं। लेकिन जो दिखता है, सब सच नहीं होता। धोखा होता है, मरीज के साथ, छलावा होता है पाठकों के साथ। एक मरीज, एक फल और देने वाले चार-पांच। इसे सस्ते में लोकप्रियता प्राप्त करने का फण्डा कहते हैं। इसे करने के लिए क्या चाहिए। एक सफेद कुर्ता-पायजामा, 20 से 25 रू किलो के भाव के पांच-सात किलो केले। बस। बाकी पिछलग्गू आदमी तो फोटो खिंचवाते समय और भी मिल ही जाएगें। अब पत्रकारों को फोन करो। शहर छोटा हो तो पत्रकार भी तैयार मिलेगें। छोटे...

दिल है कि मानता नहीं !!

- Vikas Verma जी हां, दिल का मामला ही कुछ ऐसा होता है, जिस काम को करने के लिए मना किया जाता है, जब तक उसे कर ना ले, चैन पड़ता ही नहीं है। ‘कहीं लिखा हुआ है कि - दीवार के पार देखना मना हैै।’...तो हम तो देखेगें, नहीं तो दिल को सुकुन नहीं मिलेगा। कहीं लिखा है कि यहां थूकना मना है, तो हम तो थूकेगें, क्योंकि इसी में दिल की रजा़ है, इसी में मजा़ है और इसी में शान है, अभिमान है !! अब देखो ना, ‘सरकार’ कह रही है, सब कह रहे हैं। रेडियो, अखबार, टीवी सब यही कह रहे हैं, कोरोना महामारी है ! मास्क लगाओ, दूरी बनाओ ! पर हम तो ना मास्क लगाएगें, ना हाथों पर सैनेटाईजर लगाएगें और ना सोशल डिस्टेंस बनानी है ! क्यों करें, आखिर मरना तो एक दिन सबको है ! मौत लिखी होगी तो मर जाएगें, नहीं तो क्या करेगा कोरोना !! ...और फिर कोरोना यहां थोड़ी ना है, वो तो वहीं तक है। अगर कोरोना इतना ही खतरनाक होता तो डाॅक्टर, कम्पाउण्डर, पुलिस और ये प्रेस वाले ऐसे ही थोड़ी ना घूमते। इनको भी तो जान प्यारी होगी। ...और फिर जब ये ही नहीं डरते, तो मैं क्यों डरूं ? मेरा दिल इतना कमजोर थोड़ी ना है !! कोटपूतली में मिल रहे लगातार कोरोना...

सावधान! कार्य प्रगति पर है...असुविधा के लिए खेद है!!

हथौड़े से महल गढ़ने वाले हाथ और इंसान का बोझ ढ़ोने वाले कंधे जिंदगी से जंग की 'महाभारत' में खुद से ही भिड़ गए हैं। हजारों मील की दौड़ लगाकर घर की चौखट पर दम तोड़ने की चाह में दौड़े जा रहे हैं।  कह रहे हैं हमें कोरोना नहीं, भूख मार डालेगी। - Vikas Verma, Editor. नमस्कार। मुझे यकीन है कि इस तरह का बोर्ड आपने अपने जीवन में कभी ना कभी तो किसी सड़क किनारे जरूर पढ़ा होगा। जी हां, जब कहीं सड़क निर्माण का काम हो, पानी की पाइप लाइन बिछानी हो, टेलीफोन या विद्युत केबिल ठीक करने हो... तो अक्सर इस तरह का बोर्ड लगा दिया जाता है। ठीक वैसे ही आज आपको यह भी यकीन करना होगा कि प्रकृति ने भू - लोक के कुछ हिस्से को लॉक डाउन दिया है। कुछ रिकवर करने के लिए,  कुछ रिपेयर करने के लिए। जरा एक बार सांस खींचकर तो देखिए कुछ तो फर्क आया होगा इन हवाओं में।  मानव आत्मा तो बेवजह चित्कार रही है। देखिए तो फिजाओं में कितनी शांति है।  ना आंखों में जलन,  ना कानो में शोर, ना सड़कों पर खून।  हां, मानवता की  'महाभारत' अब भी जारी है। हथौड़े से महल गढ़ने वाले हाथ और इंसान...

यह समय समय की नहीं, समझ- समझ की बात है...😎😀

*गुम हो गए संयुक्त परिवार* *एक वो दौर था* जब पति,  *अपनी भाभी को आवाज़ लगाकर*  घर आने की खबर अपनी पत्नी को देता था ।   पत्नी की *छनकती पायल और खनकते कंगन* बड़े उतावलेपन के साथ पति का स्वागत करते थे ।  बाऊजी की बातों का.. *”हाँ बाऊजी"*   *"जी बाऊजी"*' के अलावा दूसरा जवाब नही होता था । *आज बेटा बाप से बड़ा हो गया, रिश्तों का केवल नाम रह गया*  ये *"समय-समय"* की नही, *"समझ-समझ"* की बात है  बीवी से तो दूर, बड़ो के सामने, अपने बच्चों तक से बात नही करते थे  *आज बड़े बैठे रहते हैं हम सिर्फ बीवी* से बात करते हैं दादाजी के कंधे तो मानो, पोतों-पोतियों के लिए  आरक्षित होते थे, *काका* ही  *भतीजों के दोस्त हुआ करते थे ।* आज वही दादू - दादी   *वृद्धाश्रम* की पहचान है,   *चाचा - चाची* बस  *रिश्तेदारों की सूची का नाम है ।* बड़े पापा सभी का ख्याल रखते थे, अपने बेटे के लिए  जो खिलौना खरीदा वैसा ही खिलौना परिवार के सभी बच्चों के लिए लाते थे । *'ताऊजी'*  आज *सिर्फ पहचान* रह गए और,......   *छोटे के ...

कहीं कोई सिरफिरा चेहरे पर तेजाब उड़ेल जाता है ... तो कहीं हवस के भूखे कुत्ते जिस्म नोंच लेते हैं..?

नमस्कार दोस्तों। राष्ट्रीय बालिका दिवस सरकारी स्तर पर या यूं कहें कि स्कूल स्तर पर आज औपचारिक रूप से पूरे देश भर में मनाया गया। जबकि बालिका व महिलाओं से जुड़े गंभीर मामलों में आज भी महिलाएं प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार हो रही है । दिल्ली का निर्भया रेप कांड व उन्नाव रेप केस इसका उदाहरण कहा जा सकता है। आजादी के 72 साल बाद भी एक बालिका परिवार व समाज के लिए आज भी सम्मानजनक नहीं मानी जा रही है। और ना ही हमारा समाज बालिका को न्याय देने के लिए सक्षम हो पाया है। यहां तक कि आज भी कन्या भ्रूण कोख में ही मार दी जाती हैं या फिर पैदा होते ही नवजात शिशु बालिका का शव, कचरे में पड़ा मिलता है। अब जरा सोचिए कि जब सड़क के किनारे या कचरे के ढेर में सरेआम से शिशु बालिकाओं के शव पाए जा रहे हैं तो ये अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि ऐसी कितनी ही कन्या होंगी जिन्हें डॉक्टरों की सहायता से भ्रूण के रूप में ही मार दिया जा रहा है। दोस्तों, शायद ही कोई ऐसा मामला हो जिसमें पुलिस भ्रूण या शिशु बालिका का शव मिलने के बाद दोषियों का पर्दाफाश करने में कामयाब हुई हो। स्थिति तो यह है कि बेटियां जब पैदा हो जाती हैं... त...

कोई फ्री में दे तो क्या हम जहर भी खाने को तैयार हैं...

पढ़िए आज आपके स्वास्थ्य से जुड़ीे बड़ी कवरेज न्यूज चक्र पर...

आपके सामने से एक लड़की आ रही है, सुंदर सी... तो आप क्या करोगे ?

...चलिए एनआरसी और एनपीआर के सवाल पर तो आपने जवाब दे दिया...उम्मीद भी इतनी ही थी आपसे। जानता हूं, डरते हो आप कुछ लिखते! आज ही कुछेक जानकारों ने फोन कर पूछा है कि सवाल के जवाब में कुछ लिखे तो सरकार उठा तो नहीं ले जाएगी।...अब बताईए भला ...जवाब नहीं, आपने तो क्रांति लिख दी। चलिए छोड़िए, अब यह बताईए... आप कहीं जा रहे हैं और आपके सामने से एक  लड़की  आ रही है, सुंदर सी... तो आप क्या करोगे ? (चलिए मुझे पता है आप कुछ नहीं बताओगे। इसलिए आपके मन की बात भी मैं ही बता देता हूं।) आपकी उस पर नजर जाएगी। ...और एक बार नहीं, बार-बार जाएगी। जब तक वह आपकी नजरों से ओझल नहीं हो जाए, जब तक जाएगी। ...और जब वह आपको क्रास कर निकल जाएगी, तब भी आप बार-बार पलटकर उसे देखते रहोगे। ( अब बताइए, सही लिखा कि नहीं मैंने, गलत लिखा हो तो नीचे कमेंट बाॅक्स है, इस्तेमाल कर लेना।) चलिए ये बताइए कि अब वह लड़की आपको कब तक याद रहेगी।  (यह भी मैं ही बता देता हूं) पहली बात तो यह कि वह लड़की तब तक ही आपको याद रहेगी, जब तक कि वह आपकी आंखों से ओझल नहीं हो जाती। और अधिकतम आप एक दो दिन उसे सपनों मे...

टोल नाके पर अवैध वसुली, हो ही नहीं सकती। सब झूठ है ! 😊

अगर आपने अभी तक यह विडियो नहीं देखा तो पहले यह देखिए.....फिर आगे पढ़िए जी हां सही पढ़ रहे हैं आप।... तो क्या अभी जो आपने वीडियो देखा वह झूठ है ! अरे नहीं, नहीं। जरा रुकिए , हम तो यह कह रहे हैं कि जो आपने वीडियो में देखा वह अवैध वसूली नहीं , वह तो 'सेवा ' है। भला अवैध वसूली होती तो हमारा प्रशासन, पुलिस प्रशासन, परिवहन विभाग... और जो भी विभाग इन पर कार्रवाई करने में सक्षम है, भला वह ऐसा इनको कभी करने देते। नहीं ना ? और फिर सरुंड थाना तो टोल बूथ से महज 200-300 मीटर की दूरी पर ही है !  फिर भला आप यह कैसे सोच सकते हैं कि यह 'अवैध' वसूली है ? सीधे-सीधे यह क्यों नहीं कहते कि यह 'सेवा' है, या फिर हवन की आहुति की सामग्री है जो सब में बंटनी है। यह भी पढ़े... हमारी पुलिस पूरी तरह से सजग और मुस्तैद रहती है साहब, यह टीवी और अखबार वाले तो झूठ बोलते हैं यह मीडिया वाले नासमझ है जो अपनी जान हथेली पर रखकर इस हवन सरीखी़ सेवा को रोकना चाह रहे हैं। ... अरे भैया इनकी यह पर्ची तो इस बात की गवाही है कि कोटपूतली में कोई वाहन ओवरलोड नहीं चलता । ... फिर भला आप क्यों चक्की...

अंधेरा कब छंटेगा...

अंधेरा कब छंटेगा...  अखबारों व टीवी चैनलों की रिर्पोटों पर गौर करें तो अधिकतर बलात्कारों के मामले में पिड़िता का प्रेमी, भाई, चचेरा भाई, जेठ या पड़ोस में रहने वाले लोग ही होते हैं। कभी राह चलती लड़की या महिला को किसी अन्जान शख्स ने अपनी हवस का शिकार बनाया हो, ऐसा बहुत ही कम मामलों में देखने को मिलता है। मानव सभ्यता की शुरुआत से ही मौसम की मार से बचने के लिए शरीर को ढकने की जरूरत महसूस की गई. बीतते समय के साथ जानवरों की छाल पहनने से लेकर आज इतने तरह के कपड़े मौजूद हैं. जीवनशैली के आसान होने के साथ - साथ कपड़ों के ढंग भी बदले हैं और अब यह अवसर, माहौल, पसंद और फैशन के हिसाब से पहने जाते हैं. फिर पूरे बदन को ढकने वाले कपड़ों पर जोर क्यों? भारत में बलात्कार के ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि पीड़िता ने सलवार कमीज और साड़ी जैसे भारतीय कपड़े पहने हुए थे. उन पर हमला करने वाले पुरुषों ने अपनी सेक्स की भूख को मिटाने के लिए संतुलन खो दिया. ऑनर किलिंग के कई मामलों में किसी महिला को सबक सिखाने के मकसद से उस पर जबरन यौन हिंसा की गई और फिर जान से मार डाला गया. इन सबके बीच कपड़ों पर तो किसी का...

हमारी पुलिस पूरी तरह से सजग और मुस्तैद रहती है साहब, यह टीवी और अखबार वाले तो झूठ बोलते हैं

दोस्तों नमस्कार, देखिए हमारी पुलिस पूरी तरह से मुस्तैद रहती है सजग रहती है और सतर्क रहती है। इस पर कोई भी टीका टिप्पणी करना और खामखा कोई आरोप लगाना सरासर गलत और नाजायज व नाइंसाफी है। ... यह टीवी चैनल और अखबार वाले झूठ बोल रहे हैं की हाईवे से गोवंश सप्लाई होता है।... यह जो शाहजहांपुर में हुआ यह आपने सही नहीं पढ़ा... दरअसल वह लोग तो खाली गाड़ी लेकर के जा रहे थे और यह तो जनता है जिसने उस गाड़ी को रोक करके उसमें गोवंश भर दिया और बाद में वाहन चालकों की पिटाई कर दी।... हमारी पुलिस तो मुस्तैद रहती है साहब! नेशनल हाईवे से एक भी ट्रक,  पिकअप या कोई भी वाहन में गोवंश तो क्या कोई भी पशुधन का परिवहन नहीं होने देती। आप लोग खा-म-खा आरोप लगाना बंद कीजिए और पुलिस को अपना काम करने दीजिए। यह जो जनता है जिसने यह मोब लिंचिंग की घटना को अंजाम दिया है उनमें से एक के को ढूंढ ढूंढ कर के निकालेंगे... बहरोड के आस पास के गांव वालों को तो पता होगा शाहजहांपुर वालों को पता लग जाएगा। इसलिए मैं फिर कह रहा हूं आपको आगाह कर रहा हूं ... कि मंगलवार, गुरुवार और शनिवार तो बिल्कुल भी आप हाईवे की किसी गाड़ियों पर नजर मत...

छाछ में मक्खी गिर जाए तो आप छाछ फेंक देते हैं और घी में गिर जाए तो...?

...चलिए पहले बात पूरी करता हूं। छाछ में मक्खी गिर जाए तो आप  मक्खी सहित पूरी छाछ फेंक देते हैं और घी में गिर जाए तो आप  केवल मक्खी निकाल कर फेंक देते हैं।... तब आप घी को नहीं फेंकते। क्यों ? कभी पूछा अपने आप से ! यही तो... मानसिकता है 'स्वार्थ' व 'अर्थ' से भरी। हर व्यक्ति, वस्तु और पद का मूल्यांकन 'आर्थिक' हो गया है। पूरा देश भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी पर उबाल खा रहा है।  सोशल मीडिया, सिनेमा, टीवी,  समाचार पत्र... हर जगह भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी पर बहस हो रही है।  घूस लेते कर्मचारियों के वीडियो  एक-दूसरे के साथ शेयर किए जा रहे हैं। थू थू करते है,  मन भर के गालियां देते हैं।... अच्छी बात है ऐसा होना भी चाहिए। मैं तो यह भी कहता हूं कि घूस लेने वालों का मुंह काला करके उन्हें पूरे शहर घुमाना चाहिए ताकि फिर कोई दूसरा ऐसा करने की हिम्मत ना कर सके। ... लेकिन मेरा मुद्दा यह नहीं है। मैं बात कर रहा हूं 'अपनी ईमानदारी' की। वह कहां गायब हो जाती है जब हमें खुद को कोई काम करवाने के लिए  'घूसखोर' ढूंढना पड़ता है। ध्यान रहे, आप मेरे इस आरोप से बच नहीं सकते। अग...

बेटी तो... बेटी भी नहीं रहती..... फिर बेटा क्यों ?

नमस्कार, मैं शालू... वही शालू जो ब्लॉगवाणी पर रोजाना आपका स्वागत करती है... हर दिन की तरह आज भी ब्लॉगवाणी पर आपका स्वागत है दोस्तों।  अच्छा एक बात बताइए, क्या बेटियां सच में 'बेटा' होती हैं। आपका जवाब हां हो सकता है लेकिन मैं कहूंगी नहीं...! बेटियां बेटी ही रहती हैं जब तक.... तब तक की ...वह कुछ ऐसा ना कर दें कि ' पिता गर्व से कहें कि "यह बेटी नहीं बेटा है मेरा'। जी हां दोस्तों, सौ फीसदी सही कह रही हूं मैं। अब शुक्लावास गांव से निकली निशा यादव को ही देख लीजिए। टीवी चैनल और अखबार बता रहे हैं... खुद निशा ने भी बताया। ... कि मेरे शुरुआती फैसले से पापा नाराज थे।  मुझे घर से निकलना पड़ा। ... लेकिन अब निशा कामयाब हो चुकी है। अब वह मुंबई की चहेती है... मॉडल है... वकालत कर रही है।... तो अब वह पापा का बेटा है। दोस्तों, यह केवल अकेली निशा का दर्द या कहानी नहीं है। ऐसा तो हर एक लड़की के साथ होता है। लड़की की शादी से पहले तक कमोबेश हर पिता अपनी बेटी को 'बेटा' कहकर ही संबोधित करता है। ... लेकिन उसे बेटों की तरह लाइफस्टाइल में जीने की मनाही होती है। ......

मोदी जी, संविधान में करो संशोधन ऐसा... कि बलात्कारियों का भी बलात्कार हो जाए

दोस्तों नमस्कार,  ब्लॉगवाणी पर मैं शालू आपका स्वागत करती हूं। दोस्तों, कल रात मैं पुराने अखबारों को एक-एक कर देख रही थी,  छांट रही थी कबाड़ी को रद्दी देने के लिए।  इस दौरान जिस भी दिनांक का अखबार मेरे हाथ में आता गया ....कमोबेश सभी में... 3- 4 खबरें बलात्कार और महिला उत्पीड़न की थी। इनमें से कई खबरें तो अखबार के मेन पेज, व आखिरी पेज पर थी। ... देख- देख कर कलेजा बैठ सा गया।... क्या हो गया है देश को। क्या हैवानियत... दरिंदगी और हवस ही बस गई है मेरे देश के पुरुषों में !?  छी... धिक्कार है... घिन्न आती है मुझे उन लोगों पर भी... जो नारी को 'पूजनीय' बताने की बात करते हैं,  और ऐसी घटनाओं पर उनके मुंह पर डर की पट्टी बंधी रहती है।  वैसे भी नारी कब थी पूजनीय! 'अपनी मां' के चरण स्पर्श कर लेने से नारी पूजनीय सार्थक नहीं हो जाता। ... अखबार समाचार चीख रहे हैं... 6 महीने की मासूम तक को नहीं बख्श रहे हैं दरिंदे... उफ...कहते और बात करते भी कलेजा बैठता हैं। देश के प्रधानमंत्री 'बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ' की बात करते हैं... लेकिन बेटियां ना कोख में बच रही हैं ना देश में।...

जिसने सीखना छोड़ दिया, समझो जीतना छोड़ दिया।... मेरा यह आलेख जरूर पढ़ें... दावा है आपकी दिनचर्या बदल देगा

दोस्तों नमस्कार, मैं शालू वर्मा... ब्लॉगवाणी में आप सभी का स्वागत करती हूं।  दोस्तों, हम प्रतिदिन सुबह उठकर जब अपनी दिनचर्या शुरू करते हैं, तो कुछेक रोजमर्रा के कामों को छोड़कर हमें कुछ नया करना पड़ता है। यानी कि प्रतिदिन हमें कुछ नया सोचने और कुछ नया करने का अवसर मिलता है। हम यह भी कह सकते हैं कि हमारे जीवन का प्रत्येक दिन हमें कुछ नया सिखाने की चेष्टा करता है। ... लेकिन क्यों ? दोस्तों, हमें हर दिन कुछ नया इसीलिए सीखने को मिलता है क्योंकि सीखना ही जीवन है, सीखना ही जीत है।  सीखना ही जीवन का मूल मंत्र है... तभी तो जो सीखता चला गया, वह जीतता चला गया और जिसने सीखना छोड़ दिया... समझो उसने जीतना छोड़ दिया। स्टार महिला बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु और भारत के लिए स्विट्ज़रलैंड का बासेल शहर तब यादगार और ऐतिहासिक बन गया जब पिछले सप्ताह सिंधु ने विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम कर दिया। 5 फुट 10 इंच की सिंधु ने अपनी कामयाबी से बैडमिंटन की दुनिया में अपने कद को आसमानी ऊंचाइयां दे दी। वह इस टूर्नामेंट का खिताब जीतने वाली पहली भारतीय बन गई। ठीक इसी तरह 21 दिन के अंदर चेक गणर...

मैं बेटी हूं कोई सूरज नहीं जो कोहरे की चादर में दुबक जाऊं...

नमस्कार दोस्तों, ब्लॉग वाणी में आप सभी का स्वागत है मैं हूं आपकी दोस्त शालू वर्मा। सुबह हो चुकी है उठ जाइए। वैसे तो सूरज भी अभी कोहरे की चादर में दुबका हुआ है। पुरुष है ना, देर से उठेगा, आप सब की तरह। देखो ना, यह धरती सुबह 4: 00 बजे से जाग चुकी है। स्त्री है ना, जागना पड़ता है। हम सब स्त्रियों की तरह। दोस्तों, पुरुषों की तरह हमें कोई आवाज देकर नहीं उठाता। ...और ना ही हमें कोई अलार्म लगाना पड़ता है। हमें आवाज देती है ' ममता '। वो  ममता, जो हमारे पशुओं से जुड़ी है। वह ममता, जो हमारे अपने बच्चों से जुड़ी है। वह ममता, जो घर के रिश्तों व परिवार से जुड़ी है। आधे से ज्यादा भारत में हमारी बहनें यानी स्त्रियां महज इसलिए सुबह 4: 00 बजे उठ जाती हैं कि उन्हें अपने पशुओं- गाय ,भैंस, बकरी इत्यादि को चारा डालना होता है, पानी पिलाना होता है, उनका दूध निकालना होता है। फिर चाहे यह मौसम सर्दी, गर्मी, बरसात, कैसा भी क्यों ना हो। ... और दोस्तों, गांव- ढाणियों या फिर जिन घरों में पशु हों वही स्त्रियां जल्दी उठती हैं, ऐसा नहीं है। कस्बों और बड़े शहरों में भी स्त्रियों को तो जल्दी उठना ही पड़त...

दुल्हन जब किसी घर की दहलीज में प्रवेश करती है...

याद रखिए शादी के बाद लड़कियों को अपना पीहर छोड़कर ससुराल में रचना बसना होता है, सो लड़कों से ज्यादा जिंदगी उनकी बदलती है। दोस्तों, ब्लॉगवाणी में  आप सभी का स्वागत है। मैं हूं आपकी दोस्त शालू वर्मा। दोस्तों, शादी विवाह का सीजन है, रस्मों रिवाजों का महीना है, तो आइए आज बात कर लेते हैं दुल्हन की। उस दुल्हन की जो पूरे आयोजन की धुरी होती है। उस दुल्हन की जिसकी तस्वीर दीप की लौ से मिलती-जुलती है। जैसे मंदिर में दीप रखा जाता है, वैसे ही घर में दुल्हन आती है। मंदिर सजा हो तो दीप से रोनक दोगुनी हो जाती है‌। वाकई हैरानी की बात है लेकिन सच है शादी का वास्ता केवल दुल्हन से ही जोड़ कर देखा जाता है। शादी केवल एक आयोजन है जिसमें ढेर सारे लोग शामिल होते हैं दुल्हन की अपनी रीत होती है बहुत सारे कार्यक्रम, रश्में और धूम होती है, लेकिन जिनमें दुल्हन शामिल हो। दिलचस्प केवल उन्हें ही माना जाता है या यूं कहें कि जिक्र केवल उन्हीं का होता है। जिक्र होता भी केवल दुल्हन का ही है, दूल्हे को लड़का कहकर बुलाया जाता है और लड़के का व्यक्तित्व बहुत हद तक उसकी नौकरी से और कुछ हद तक उसके रूप से आंक लिया...

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