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Earn money? इतना भी मुश्किल नहीं है...#जीवन_आनन्द:

Best place लाईफ (Life) जब मूवमेंट (Movement) करती है, तो समझिए कि कुछ अच्छा होने जा रहा है। यह क्या हो सकता है, आप नहीं जानते, लेकिन रोजर्मरा की सैटेल्ड लाईफ में हल्के से चेंजिंग से भी आप परेशान हो जाते हैं। यह ठीक वैसा ही है, जैसे कि आपकी शादी होना, आपकी जाॅब लगना या आपका टांसफर हो जाना। Vikas Kumar Verma Editor, News Chakra नमस्कार दोस्तों, ब्लाॅगवाणी के #जीवन_आनन्द में आपका स्वागत है। मैं हूं आपके साथ विकास वर्मा। दोस्तों, कल मुझे एक फोन काॅल आया। अपने ही शहर से, कोटपूतली से। नाम बताया, श्रृति। श्रृति ने बताया कि उसकी शादी को 5 साल हुए हैं। पति के पास कोई काम नहीं है, या यूं कहूं कि अपनी जिम्मेदारी के प्रति जिम्मेदार नहीं है। घर खर्च भी नहीं कमाता है। ऐसे में कई बार बाहर काम करने जाना पड़ता है। मैं लोगों के खेतों में काम करके कुछ पैसे ले आती हुं, तो घर खर्च चलता है। दोस्तों, श्रृति ने बताया कि उसका पति उसे बाहर कमाने जाने से मना करता है, साथ ही अगर बाहर जाती है तो उस पर चरित्रहीन का आरोप लगाता है। उसे अन्य परिवारजनों के सामने बेईज्जत करता है, गालियां निकालता है। श्रृति ने पूछा- मु...

#जीवन_आनन्द: कांटे ही सुरक्षा कवच होते हैं, सीख लो

कोरोना ने Life Style को बदल दिया है। सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक का टाईम टेबल परिवर्तित हो चुका है। व्यापार के नियम कायदे भी बदल रहे हैं। इस बीच कुछ को अवसर मिला है तो बहुत से लोग अवसाद में भी हैं। लेकिन क्यों ? Vikas Kumar Verma  जीवन प्रकृति से परे तो नहीं है! प्रकृति खुद बताती है कि ‘जीवन में छोटे से छोटे परिवर्तन’ के भी क्या मायने हैं। फिर हम छोटी-छोटी परेशानियों से घबरा क्यूं जाते हैं। दोस्तों, नमस्कार। ब्लाॅगवाणी के जीवन आनन्द काॅलम में आपका स्वागत है। मैं हूं आपके साथ विकास वर्मा। आईए, चर्चा करते हैं आज ब्लाॅगवाणी में ‘कांटों के सुरक्षा कवच’ की। क्योंकि गुलाब की तरह महकना है तो कांटों को ही सुरक्षा कवच बनाना होगा। जीवन में ‘बेर’ की सी मिठास चाहिए, तो कांटों को सुरक्षा कवच बनाईए। ग्वारपाठे से गुण चाहिए तो ‘कांटों को सुरक्षा कवच बनाईए। यानी कि जीवन में कांटों का सुरक्षा कवच हमें ‘VIP’ बनाता है। और ये कांटे होते हैं हमारी बाधाऐं, हमारी परेशानियां, हमारे दुखः। यह तो तय है कि जीवन में हरेक परेशानी एक नयी राह दिखाती है। जब भी हम परेशानियों से घिरते हैं तो खुद को और अधि...

अंधेरा कब छंटेगा...

अंधेरा कब छंटेगा...  अखबारों व टीवी चैनलों की रिर्पोटों पर गौर करें तो अधिकतर बलात्कारों के मामले में पिड़िता का प्रेमी, भाई, चचेरा भाई, जेठ या पड़ोस में रहने वाले लोग ही होते हैं। कभी राह चलती लड़की या महिला को किसी अन्जान शख्स ने अपनी हवस का शिकार बनाया हो, ऐसा बहुत ही कम मामलों में देखने को मिलता है। मानव सभ्यता की शुरुआत से ही मौसम की मार से बचने के लिए शरीर को ढकने की जरूरत महसूस की गई. बीतते समय के साथ जानवरों की छाल पहनने से लेकर आज इतने तरह के कपड़े मौजूद हैं. जीवनशैली के आसान होने के साथ - साथ कपड़ों के ढंग भी बदले हैं और अब यह अवसर, माहौल, पसंद और फैशन के हिसाब से पहने जाते हैं. फिर पूरे बदन को ढकने वाले कपड़ों पर जोर क्यों? भारत में बलात्कार के ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि पीड़िता ने सलवार कमीज और साड़ी जैसे भारतीय कपड़े पहने हुए थे. उन पर हमला करने वाले पुरुषों ने अपनी सेक्स की भूख को मिटाने के लिए संतुलन खो दिया. ऑनर किलिंग के कई मामलों में किसी महिला को सबक सिखाने के मकसद से उस पर जबरन यौन हिंसा की गई और फिर जान से मार डाला गया. इन सबके बीच कपड़ों पर तो किसी का...

दुल्हन जब किसी घर की दहलीज में प्रवेश करती है...

याद रखिए शादी के बाद लड़कियों को अपना पीहर छोड़कर ससुराल में रचना बसना होता है, सो लड़कों से ज्यादा जिंदगी उनकी बदलती है। दोस्तों, ब्लॉगवाणी में  आप सभी का स्वागत है। मैं हूं आपकी दोस्त शालू वर्मा। दोस्तों, शादी विवाह का सीजन है, रस्मों रिवाजों का महीना है, तो आइए आज बात कर लेते हैं दुल्हन की। उस दुल्हन की जो पूरे आयोजन की धुरी होती है। उस दुल्हन की जिसकी तस्वीर दीप की लौ से मिलती-जुलती है। जैसे मंदिर में दीप रखा जाता है, वैसे ही घर में दुल्हन आती है। मंदिर सजा हो तो दीप से रोनक दोगुनी हो जाती है‌। वाकई हैरानी की बात है लेकिन सच है शादी का वास्ता केवल दुल्हन से ही जोड़ कर देखा जाता है। शादी केवल एक आयोजन है जिसमें ढेर सारे लोग शामिल होते हैं दुल्हन की अपनी रीत होती है बहुत सारे कार्यक्रम, रश्में और धूम होती है, लेकिन जिनमें दुल्हन शामिल हो। दिलचस्प केवल उन्हें ही माना जाता है या यूं कहें कि जिक्र केवल उन्हीं का होता है। जिक्र होता भी केवल दुल्हन का ही है, दूल्हे को लड़का कहकर बुलाया जाता है और लड़के का व्यक्तित्व बहुत हद तक उसकी नौकरी से और कुछ हद तक उसके रूप से आंक लिया...

सीखने का जज्बा न तो आज कम है और ना हीं उस समय, बस हममें सीखने की ललक व जज्बा होना चाहिए

नमस्कार दोस्तों, ब्लॉगवाणी पर आपका स्वागत है। मैं हूं आपकी दोस्त शालू वर्मा। आज हम बात करेंगे शिक्षा यानी सीख की। सीख अच्छी या बुरी कैसी भी हो सकती है बस हमारा नजरिया सही होना चाहिए। एक ही कार्य के प्रति अलग-अलग लोगों का अलग अलग नजरिया होता है बस हमें उस नजरिए के द्वारा ही पता चलता है हम कुछ सीख रहे हैं या नहीं। वैसे सीखना जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। एक व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ न कुछ सीखता है। दोस्तों, हम अपनी रोजमर्रा जिंदगी में भी हर घड़ी हर पल कुछ न कुछ सीखते हैं। इस सीखने की प्रक्रिया के कारण ही रूढ़िवादी विचारों तकनीकों को छोड़कर नई तकनीकों को आत्मसात किया गया है। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी तो युवा वर्ग को भारत की शक्ति मानते हैं और हमेशा कुछ नया करने पर बल देते हैं। वैसे, आपको बता दें कि सीखना तकनीक या फिर किसी नई खोज को ही नहीं कहते बल्कि एक नवजात शिशु का जन्म लेने के पश्चात पहली बार रोना भी सीखना ही होता है। प्राचीन समय में बालक सीखने के लिए आश्रमों में जाते थे। वहां पर ऋषि-मुनियों की शरण में रहकर दैनिक जीवन को चलाने के गुर सीखते थे। आज ...

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