- Vikas Verma
जी हां, दिल का मामला ही कुछ ऐसा होता है, जिस काम को करने के लिए मना किया जाता है, जब तक उसे कर ना ले, चैन पड़ता ही नहीं है। ‘कहीं लिखा हुआ है कि - दीवार के पार देखना मना हैै।’...तो हम तो देखेगें, नहीं तो दिल को सुकुन नहीं मिलेगा। कहीं लिखा है कि यहां थूकना मना है, तो हम तो थूकेगें, क्योंकि इसी में दिल की रजा़ है, इसी में मजा़ है और इसी में शान है, अभिमान है !!
अब देखो ना, ‘सरकार’ कह रही है, सब कह रहे हैं। रेडियो, अखबार, टीवी सब यही कह रहे हैं, कोरोना महामारी है ! मास्क लगाओ, दूरी बनाओ ! पर हम तो ना मास्क लगाएगें, ना हाथों पर सैनेटाईजर लगाएगें और ना सोशल डिस्टेंस बनानी है ! क्यों करें, आखिर मरना तो एक दिन सबको है ! मौत लिखी होगी तो मर जाएगें, नहीं तो क्या करेगा कोरोना !! ...और फिर कोरोना यहां थोड़ी ना है, वो तो वहीं तक है। अगर कोरोना इतना ही खतरनाक होता तो डाॅक्टर, कम्पाउण्डर, पुलिस और ये प्रेस वाले ऐसे ही थोड़ी ना घूमते। इनको भी तो जान प्यारी होगी। ...और फिर जब ये ही नहीं डरते, तो मैं क्यों डरूं ? मेरा दिल इतना कमजोर थोड़ी ना है !!
कोटपूतली में मिल रहे लगातार कोरोना पॉजिटिव केस ! बिना मास्क व सोशल डिस्टेंस की अवहेलना वालों पर कार्यवाही कब ?*
क्यूं...सही कह रहे है ना हम ! अब देखो ना। घर-घर, गली-गली और मौहल्ले -मौहल्ले में कोरोना पाॅजिटिव केस मिल रहे हैं, लेकिन हमें क्या ! अब पुलिस कौन-सा हमारा चालान काट रही है। सरकार ने तो कह दिया है कि सार्वजनिक जगह पर थूकने वाले का भी चालान करो, मास्क ना लगाने वालों का चालान करो ! लेकिन पुलिस बेवकूफ थोड़ी ना है, पैन पर कोराना लग गया तो !! चालान काॅपी पर कोरोना हुआ तो !! बस, फिर क्या डरना ? दिमाग क्यों लगाना... दिल की सुनो, दिल कमजोर थोड़ी ना है।
(दिल की बात लिख दी हो तो शेयर जरूर करें)
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