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कहीं कोई सिरफिरा चेहरे पर तेजाब उड़ेल जाता है ... तो कहीं हवस के भूखे कुत्ते जिस्म नोंच लेते हैं..?

नमस्कार दोस्तों। राष्ट्रीय बालिका दिवस सरकारी स्तर पर या यूं कहें कि स्कूल स्तर पर आज औपचारिक रूप से पूरे देश भर में मनाया गया। जबकि बालिका व महिलाओं से जुड़े गंभीर मामलों में आज भी महिलाएं प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार हो रही है। दिल्ली का निर्भया रेप कांड व उन्नाव रेप केस इसका उदाहरण कहा जा सकता है। आजादी के 72 साल बाद भी एक बालिका परिवार व समाज के लिए आज भी सम्मानजनक नहीं मानी जा रही है। और ना ही हमारा समाज बालिका को न्याय देने के लिए सक्षम हो पाया है। यहां तक कि आज भी कन्या भ्रूण कोख में ही मार दी जाती हैं या फिर पैदा होते ही नवजात शिशु बालिका का शव, कचरे में पड़ा मिलता है। अब जरा सोचिए कि जब सड़क के किनारे या कचरे के ढेर में सरेआम से शिशु बालिकाओं के शव पाए जा रहे हैं तो ये अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि ऐसी कितनी ही कन्या होंगी जिन्हें डॉक्टरों की सहायता से भ्रूण के रूप में ही मार दिया जा रहा है।

दोस्तों, शायद ही कोई ऐसा मामला हो जिसमें पुलिस भ्रूण
या शिशु बालिका का शव मिलने के बाद दोषियों का पर्दाफाश करने में कामयाब हुई हो। स्थिति तो यह है कि बेटियां जब पैदा हो जाती हैं... तो शुरु से ही उपेक्षा का शिकार होना शुरू हो जाती हैं। घर में तानों का शिकार होती हैं, स्कूल में फब्तियों का शिकार होती हैं। फिर कहीं कोई सिरफिरा चेहरे पर तेजाब उड़ेल जाता है। ... तो कहीं हवस के भूखे कुत्ते जिस्म नोंच लेते हैं। ... और बेटियां फिर न्याय के इंतजार में जिंदगी की जंग तक हार जाती हैं। अब आप ही बताइए कि बेटियां राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाए तो कैसे ?🤔

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