सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

नेता, जनप्रतिनिधि, भामाशाह !! छलावा बन रहे शब्द!

दोस्तों, कहीं सुना या पढ़ा तो होगा आपने भी कभी, कि ‘ये शब्द काटते हैं’। लेकिन यह समझ नहीं आया होगा कि कौनसे ‘शब्द’। चलिए मैं बताता हूं। लेकिन हां, अच्छा लगे तो इस आलेख को दूसरों के साथ साझा/शेयर जरूर कर देना।


दोस्तों, कोरोना महामारी के बीच आए दिन अखबारों में, टीवी चैनलों पर सैकड़ों हजारों समाचार आपने पढ़ लिए होगें कि ‘फलां भामाशाह ने इतने रूपए दिए। फलां नेता, जनप्रतिनिधि या जनसेवक ने सीएम या पीएम फण्ड में दान दिया। कभी-कभी तो आपने ऐसे नेताओं की अस्पतालों में फल बांटते की तस्वीरें भी देखी होंगी। जिसमें एक ही आदमी को एक साथ चार -पांच लोग मिलकर एक केला या सेब भेंट करते हैं। लेकिन जो दिखता है, सब सच नहीं होता। धोखा होता है, मरीज के साथ, छलावा होता है पाठकों के साथ। एक मरीज, एक फल और देने वाले चार-पांच। इसे सस्ते में लोकप्रियता प्राप्त करने का फण्डा कहते हैं। इसे करने के लिए क्या चाहिए। एक सफेद कुर्ता-पायजामा, 20 से 25 रू किलो के भाव के पांच-सात किलो केले। बस। बाकी पिछलग्गू आदमी तो फोटो खिंचवाते समय और भी मिल ही जाएगें। अब पत्रकारों को फोन करो। शहर छोटा हो तो पत्रकार भी तैयार मिलेगें। छोटे से शहर में छापने के लिए जो मिले वो ठीक ! वैसे भी पत्रकारिता करने के लिए तो साहस चाहिए। खैर, घर के प्रोग्राम के लिए फोटोग्राफर की रेट पूछोगे तो 1000 रूपये से कम नहीं मिलेगा, लेकिन ऐसे ‘फर्जी’ प्रोग्राम में कोई भी ‘ फ्री’ में फोटोग्राफर यानी पत्रकार बुला सकता है। यहां फोटो ही नहीं बनेगी, बल्कि शान में 'दो शब्द' भी लिखें जाएगें।

जैसे कि अब हो रहा है। पहले पक्षियों के नाम पर 10 आदमी मिलकर एक परिन्डा लगाओ। फिर उसका समाचार अखबारों में छपवाओ। फिर उन 10 आदमियों में से कोई एक आपस में ‘कोरोना योद्धा’ का सर्टिफिकेट देगा। फिर उस सर्टिफिकेट की काॅपी के साथ अपनी फोटो फिर से अखबार में छपने के लिए भेजो। और कोरोना योद्धा कहलाओ।

ऐसे छ़पास के लिए शहर में सैकड़ों नेता हैं। लेकिन जब शहर की ‘हवा’ खराब हो रही हो। या कोरोना के मरीज कोरोना वार्ड में ही भूख से बिलबिला रहे हों, तो ऐसे जनप्रतिनिधि, नेता या भामाशाह ‘दुबक’ जाते हैं। मुंह पर ‘पट्टी’ लगा लेते हैं। जेब खाली नजर आने लगती है और अपने ‘आकाओं’ से डर लगने लगता है।

लेकिन अब जनता जागरूक हैं। यह इन्हें याद दिलाना जरूरी है। जब जनता को वक्त पर रोटी भी नसीब ना हो तो उसे ‘ये शब्द’ काटने लगते हैं। धन्यवाद। आलेख कुछ -कुछ समझ आया हो तो फारवर्ड करने का साहस जरूर करें।
संदर्भ- पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। 

कोरोना पाॅजिटिव मरीजों के साथ अमानवीय व्यवहार, जिम्मेदारों की आंखे बंद ?

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आज का प्रश्न ?

शादी के बाद जीवन साथी से सबंध विच्छेद करने हों तो इंग्लिश में डायवर्स बोल देते हैं, उर्दू में ‘तलाक’ कहा जाता है। क्या बता सकते हैं हिन्दी में क्या प्रावधान है? अपना जवाब नीचे कमेंट बाॅक्स में लिखें। कोई शब्द सीमा नहीं! ---------------------------------------------------------- Earn Money With Bllogvani. Note:-   आपकी लेखन में रूचि है, तो घर बैठे कमाऐं। ब्लाॅगवाणी के लिए Artical लिखें। 300-400 शब्दों के स्वरचित आलेख/  Artical  पर ब्लागवाणी से आपको प्रति आलेख 201/- रू प्रदान किए जाएगें। सीधे आपके बैंक खाते में।...तो देर किस बात की, अपने पंसदीदा विषय पर आलेख/ Artical  तैयार करें और व्हाटसअप करें- 9887243320 पर। आपका आलेख ब्लाॅगवाणी पर प्रकाशित होने के उपरांत मानदेय राशि आपके बैक खाते में ट्रांसफर कर दी जाएगी।                                                                                         --------------------------------------------------------- -

हाथरस मामले की पूरी खबर..ka...DNA

DNA: Hathras की बेटी के साथ मौत के बाद भी अन्याय! | Sudhir Chaudhary on Hathras Gang Rape Case With Thanks. DNA.

#जीवन आनन्द: अतीत अवसाद बढ़ाता है और वर्तमान अवसर पैदा करता है

Vikas Kumar Verma  नमस्कार दोस्तों, ब्लाॅगवाणी पर #जीवन_आनन्द काॅलम में आप सभी का स्वागत है। मैं हूं आपके साथ विकास वर्मा। दोस्तों, जीवन में जब अतीत के पन्ने पलटे जाते हैं तो प्रेम कम और अवसाद ज्यादा पनपता है। यानी कि कई बार हम 8-10 साल पुरानी यादों की गठरी ढ़ोते रहते हैं, इस उम्मीद के साथ कि सामने वाले के अंहकार पर एक दिन जरूर चोट पहुंचेगी। लेकिन असल में हम अपने ही अंहकार को ढ़ो रहे होते हैं। क्योंकि असल में तो वर्तमान में जीने का नाम ही जिंदगी हैं, क्योंकि अतीत अवसाद बढ़ाता है और वर्तमान अवसर पैदा करता है। आईए, आज ब्लागवाणी के जीवन आनन्द के इस अंक में अतीत कि किताब को बंदकर आज की रोशनी में अवसर की राह तलाशें... दोस्तों, जीवन में जब अवसाद पनपनता है तो मन टूटने लगता है, अंधेरे कमरे में बैठना और एकांत अच्छा लगने लगता हैं। क्योंकि हम भूल जाते हैं कि जीवन केवल पेड़ नहीं है. जीवन गहरी छाया भी है. पेड़, जितना अपने लिए है, उतना ही दूसरे के लिए! हमारे सुख-दुख आपस में मिले हुए हैं. इनको अलग करते ही संकट बढ़ता है! जबकि इसे समझते ही सारे संकट आसानी से छोटे होते जाते हैं. सुलझते जाते हैं. लेकिन हम औ

कृपया फोलो/ Follow करें।

कुल पेज दृश्य