...चलिए पहले बात पूरी करता हूं। छाछ में मक्खी गिर जाए तो आप मक्खी सहित पूरी छाछ फेंक देते हैं और घी में गिर जाए तो आप केवल मक्खी निकाल कर फेंक देते हैं।... तब आप घी को नहीं फेंकते। क्यों ? कभी पूछा अपने आप से ! यही तो... मानसिकता है 'स्वार्थ' व 'अर्थ' से भरी। हर व्यक्ति, वस्तु और पद का मूल्यांकन 'आर्थिक' हो गया है।
पूरा देश भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी पर उबाल खा रहा है। सोशल मीडिया, सिनेमा, टीवी, समाचार पत्र... हर जगह भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी पर बहस हो रही है। घूस लेते कर्मचारियों के वीडियो एक-दूसरे के साथ शेयर किए जा रहे हैं। थू थू करते है, मन भर के गालियां देते हैं।... अच्छी बात है ऐसा होना भी चाहिए। मैं तो यह भी कहता हूं कि घूस लेने वालों का मुंह काला करके उन्हें पूरे शहर घुमाना चाहिए ताकि फिर कोई दूसरा ऐसा करने की हिम्मत ना कर सके। ... लेकिन मेरा मुद्दा यह नहीं है। मैं बात कर रहा हूं 'अपनी ईमानदारी' की। वह कहां गायब हो जाती है जब हमें खुद को कोई काम करवाने के लिए 'घूसखोर' ढूंढना पड़ता है। ध्यान रहे, आप मेरे इस आरोप से बच नहीं सकते। अगर मैंने गलत कहा हो तो अभी आईने के सामने खड़े होकर अपने आप से पूछ कर देख लेना।... और अगर नहीं तो बताइए...
क्या आपने कभी बस में फ्री में यात्रा करने की कोशिश नहीं की?
क्या कभी आपका वाहन पुलिस द्वारा रोके जाने पर आपने उन्हें कुछ ले - देकर चालान बचाने की कोशिश नहीं की?
क्या अपना ड्राइविंग लाइसेंस बनवाते समय आपने दलाल का सहारा नहीं लिया?
क्या बिजली- पानी का कनेक्शन लेने के लिए आपने अपना फॉर्म (आवेदन) दलाल से नहीं भरवाया ?
...और एक खास प्रश्न... आपके मोहल्ले या गली में बीपीएल कितने हैं?
... हे प्रभु, प्रश्न इतने की खुद से जवाब देते ना बने। फिर खा-म-खा इतनी बहस।
... अन्यथा ना लें दोस्तों, कहने का अर्थ सिर्फ इतना है कि पहले हमें खुद को बदलना होगा। ... और हां बदलना ही होगा अगर हम यह चाहते हैं कि इस तरह के वीडियो बनकर समाज और देश की छवि खराब ना करें। ... ऐसा नहीं है कि देश में सभी बेईमान हैं और ऐसा भी नहीं है कि हम सभी ईमानदार हैं... मैंने बीपीएल का जिक्र किया। शायद ही मोहल्ले में कोई घर ऐसा होगा जो इस 'सुविधा' का लाभ ना उठा रहा हो। पक्का घर, गाड़ी, टीवी, फ्रिज कूलर... हर ऐसो आराम की सुविधा उपलब्ध होने के बावजूद अगर बीपीएल का राशन उठा रहे हैं तो इससे बड़ा भ्रष्टाचार और शर्मनाक बात क्या होगी, हम शिक्षित, सभ्य और सामाजिक लोगों के लिए। याद रखिए, जहां हमारा स्वार्थ समाप्त होता है इंसानियत वहीं से शुरू होती है, इसलिए केवल दृष्टि ही नहीं दृष्टिकोण भी सही रखें।.. आप सोचे, समझे, मनन करें और अपनी प्रतिक्रिया मुझे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं... मिलता हूं अगले आलेख में नए विषय के साथ। @ Vikas Verma
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