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बेटी तो... बेटी भी नहीं रहती..... फिर बेटा क्यों ?

नमस्कार, मैं शालू... वही शालू जो ब्लॉगवाणी पर रोजाना आपका स्वागत करती है... हर दिन की तरह आज भी ब्लॉगवाणी पर आपका स्वागत है दोस्तों।  अच्छा एक बात बताइए, क्या बेटियां सच में 'बेटा' होती हैं। आपका जवाब हां हो सकता है लेकिन मैं कहूंगी नहीं...! बेटियां बेटी ही रहती हैं जब तक.... तब तक की ...वह कुछ ऐसा ना कर दें कि ' पिता गर्व से कहें कि "यह बेटी नहीं बेटा है मेरा'। जी हां दोस्तों, सौ फीसदी सही कह रही हूं मैं। अब शुक्लावास गांव से निकली निशा यादव को ही देख लीजिए। टीवी चैनल और अखबार बता रहे हैं... खुद निशा ने भी बताया। ... कि मेरे शुरुआती फैसले से पापा नाराज थे।  मुझे घर से निकलना पड़ा। ... लेकिन अब निशा कामयाब हो चुकी है। अब वह मुंबई की चहेती है... मॉडल है... वकालत कर रही है।... तो अब वह पापा का बेटा है। दोस्तों, यह केवल अकेली निशा का दर्द या कहानी नहीं है। ऐसा तो हर एक लड़की के साथ होता है। लड़की की शादी से पहले तक कमोबेश हर पिता अपनी बेटी को 'बेटा' कहकर ही संबोधित करता है। ... लेकिन उसे बेटों की तरह लाइफस्टाइल में जीने की मनाही होती है। ......

दुल्हन जब किसी घर की दहलीज में प्रवेश करती है...

याद रखिए शादी के बाद लड़कियों को अपना पीहर छोड़कर ससुराल में रचना बसना होता है, सो लड़कों से ज्यादा जिंदगी उनकी बदलती है। दोस्तों, ब्लॉगवाणी में  आप सभी का स्वागत है। मैं हूं आपकी दोस्त शालू वर्मा। दोस्तों, शादी विवाह का सीजन है, रस्मों रिवाजों का महीना है, तो आइए आज बात कर लेते हैं दुल्हन की। उस दुल्हन की जो पूरे आयोजन की धुरी होती है। उस दुल्हन की जिसकी तस्वीर दीप की लौ से मिलती-जुलती है। जैसे मंदिर में दीप रखा जाता है, वैसे ही घर में दुल्हन आती है। मंदिर सजा हो तो दीप से रोनक दोगुनी हो जाती है‌। वाकई हैरानी की बात है लेकिन सच है शादी का वास्ता केवल दुल्हन से ही जोड़ कर देखा जाता है। शादी केवल एक आयोजन है जिसमें ढेर सारे लोग शामिल होते हैं दुल्हन की अपनी रीत होती है बहुत सारे कार्यक्रम, रश्में और धूम होती है, लेकिन जिनमें दुल्हन शामिल हो। दिलचस्प केवल उन्हें ही माना जाता है या यूं कहें कि जिक्र केवल उन्हीं का होता है। जिक्र होता भी केवल दुल्हन का ही है, दूल्हे को लड़का कहकर बुलाया जाता है और लड़के का व्यक्तित्व बहुत हद तक उसकी नौकरी से और कुछ हद तक उसके रूप से आंक लिया...

कमरा नंबर 39... हास्य मनोरंजक लेख। जरूर पढ़ें।

एक पंडित एक होटल में जाता है। और वहां पर मैनेजर को बुलाता है, और कहता है कि "क्या रूमनंबर 39 खाली है ? मैनेजर:- हां वो खाली है आप वो रूम ले सकते हैं...। पंडित:- ठीक है मुझे वो रूम दे दो, और  मुझे एक चाकू, एक 3 इंच का काला धागा और एक 79 ग्राम का संतरा भी दे दो...। मैनेजर:- ठीक है...और हां मेरा कमरा आपके कमरे के ठीक सामने है। अगर आपको कोई दिक्कत होती है तो तुम मुझे आवाज दे देना...। पंडित:- ठीक है... रात को......पंडित के कमरे से तेजी से चिखने चिल्लाने की  और प्लेटों के टूटने की आवाज आने लगती हैं। इन आवाजों के कारण मैनेजर सो भी नही पाता। ....और वो रात भर इस ख्याल से बैचेन होने लगता है, कि आखिर उस कमरे में हो क्या रहा है? अगली सुबह....... जैसे ही मैनेजर पंडित के कमरे में जाता है, वहाँ पर उसे पता चलता है कि पंडित होटल से चला गया है। ...और कमरे में सब कुछ वैसे का वैसा ही है।...और टेबल पर चाकू रखा हुआ है। मैनेजर ये सोचने लगता है कि जो उसने सुना कहीं उसका मात्र वहम तो नही था।...और ऐसे ही एक साल बीत जाता है। एक साल बाद........ वही पंडित फिर से...

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