कभी दिल्ली, कभी राजस्थान, कभी यूपी। क्यों हर दिन कोई बेटी कोई ‘पिड़िता’ कोई Nirbhaya बन जाती है। क्यों सरकारें चमचमाती सड़कें देने के बावजूद एक सुरक्षित ‘गली’ नहीं दे पा रही हैं। आज अगर आप गुस्से और जोश में हैं तो याद कीजिए, उस दिन को जब पिछली बार आपके खून में उबाल आया था, बिल्कुल आज ही की तरह, वो दिल्ली की सड़कें थी, बावजूद इसके आज फिर हाथरस की एक ‘निर्भया’ न्याय मांग रही है। यहां सवाल किसी सरकार से नहीं हैं, यहां सवाल आपसे है, क्योंकि वोट आप ही के हाथ से निकलता है! हाथरस की एक Nirbhaya फिर ‘टीआरपी’ दे गई ? justice for.... ये देश आज फिर गुस्से में हैं। क्योंकि यूपी में जो हुआ, वो ‘कलंक’ है। मानवता पर, धर्म पर, राज पर और नीति पर। भला कैसे नवरात्रों में ‘कन्या’ पूजने का ढोंग कर लेते हम! गुनाहगारों को सजा मुकर्र करने की बजाय पुलिस पिड़िता की ही लाश को आधी रात के समय जंगल में कचरे और फूंस से मिटा दे, तो ‘दुष्कर्म की परिभाषा क्या होगी ? ध्यान देना। देश की आधी से ज्यादा आबादी गांवों में बसती है। गांव ही हैं जो अन्न उगाता है, फल उगाता है, पशुओं को पालता है। गांव के दूध से शहर पलते-बढ़ते आए है