सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

टोल नाके पर अवैध वसुली, हो ही नहीं सकती। सब झूठ है ! 😊

अगर आपने अभी तक यह विडियो नहीं देखा तो पहले यह देखिए.....फिर आगे पढ़िए



जी हां सही पढ़ रहे हैं आप।... तो क्या अभी जो आपने वीडियो देखा वह झूठ है ! अरे नहीं, नहीं। जरा रुकिए, हम तो यह कह रहे हैं कि जो आपने वीडियो में देखा वह अवैध वसूली नहीं, वह तो 'सेवा' है। भला अवैध वसूली होती तो हमारा प्रशासन, पुलिस प्रशासन, परिवहन विभाग... और जो भी विभाग इन पर कार्रवाई करने में सक्षम है, भला वह ऐसा इनको कभी करने देते। नहीं ना ? और फिर सरुंड थाना तो टोल बूथ से महज 200-300 मीटर की दूरी पर ही है !  फिर भला आप यह कैसे सोच सकते हैं कि यह 'अवैध' वसूली है ? सीधे-सीधे यह क्यों नहीं कहते कि यह 'सेवा' है, या फिर हवन की आहुति की सामग्री है जो सब में बंटनी है।

यह भी पढ़े... हमारी पुलिस पूरी तरह से सजग और मुस्तैद रहती है साहब, यह टीवी और अखबार वाले तो झूठ बोलते हैं

यह मीडिया वाले नासमझ है जो अपनी जान हथेली पर रखकर इस हवन सरीखी़ सेवा को रोकना चाह रहे हैं। ... अरे भैया इनकी यह पर्ची तो इस बात की गवाही है कि कोटपूतली में कोई वाहन ओवरलोड नहीं चलता। ... फिर भला आप क्यों चक्की के दो पाटों के बीच का गेंहूं बन रहे हो ? और यह जनता है, इन्हें इससे कोई मतलब नहीं है। बस यह समाचार या यह वीडियो देखकर इतना ही कहेंगे ...अरे यार, देखो कितना घपला हो रहा है और फिर खाना खाएंगे और सो जाएंगे और जब सो कर उठेंगे तो सब कुछ भूल जाएंगे...!  ...अब आप ही बताइए, आप क्या सोचते हैं इस समाचार पर... कुछ भी लिखना, मगर लिखना जरूर...या फिर India • Sri Lanka मैच में ही खोए रहोगे। नमस्कार।

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सही लिखे हो भाई। पुलिस प्रशासन और टोल माफिया का नेक्सस बना हुआ है। पर्दाफाश जरूरी है

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे विनोबा भावे...

नमस्कार दोस्तों, महापुरुषों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती। उनका लोक हितकारी चिंतन युगों युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता है। ब्लॉगवाणी में आज हम एक ऐसे ही प्रकाश स्तंभ की चर्चा करेंगे, जो ना केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी रहे बल्कि एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थे और पूरा देश जिन्हें राष्ट्रीय अध्यापक का सम्मान देता है। जी हां, आज हम बात करेंगे आचार्य विनोबा भावे की। आचार्य विनोबा भावे जिन्हें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी भी कहा गया। उनकी आध्यात्मिक चेतना समाज और व्यक्ति से जुड़ी थी, इसी कारण संत स्वभाव के बावजूद उनमें राजनीतिक सक्रियता भी थी।  उन्होंने सामाजिक अन्याय और धार्मिक विषमता का मुकाबला करने के लिए देश की जनता को स्वयंसेवी होने का आह्वान किया। उन्होंने देश की जनता के हितों के लिए जो आंदोलन चलाएं वह अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं है। 1951 की बात है, आजाद हिंदुस्तान को जन्म लिए बस 4 ही साल बीते थे। देश में भयंकर गरीबी थी। लोगों के पास खाने के लिए रोटी नहीं थी। रोटी बनाने के लिए अन्न नहीं था। अन्न उपजाने के लिए जमीन नहीं थ...

सीखने का जज्बा न तो आज कम है और ना हीं उस समय, बस हममें सीखने की ललक व जज्बा होना चाहिए

नमस्कार दोस्तों, ब्लॉगवाणी पर आपका स्वागत है। मैं हूं आपकी दोस्त शालू वर्मा। आज हम बात करेंगे शिक्षा यानी सीख की। सीख अच्छी या बुरी कैसी भी हो सकती है बस हमारा नजरिया सही होना चाहिए। एक ही कार्य के प्रति अलग-अलग लोगों का अलग अलग नजरिया होता है बस हमें उस नजरिए के द्वारा ही पता चलता है हम कुछ सीख रहे हैं या नहीं। वैसे सीखना जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। एक व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ न कुछ सीखता है। दोस्तों, हम अपनी रोजमर्रा जिंदगी में भी हर घड़ी हर पल कुछ न कुछ सीखते हैं। इस सीखने की प्रक्रिया के कारण ही रूढ़िवादी विचारों तकनीकों को छोड़कर नई तकनीकों को आत्मसात किया गया है। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी तो युवा वर्ग को भारत की शक्ति मानते हैं और हमेशा कुछ नया करने पर बल देते हैं। वैसे, आपको बता दें कि सीखना तकनीक या फिर किसी नई खोज को ही नहीं कहते बल्कि एक नवजात शिशु का जन्म लेने के पश्चात पहली बार रोना भी सीखना ही होता है। प्राचीन समय में बालक सीखने के लिए आश्रमों में जाते थे। वहां पर ऋषि-मुनियों की शरण में रहकर दैनिक जीवन को चलाने के गुर सीखते थे। आज ...

Nirbhaya ने फिर मांगा इंसाफ! क्यों?

कभी दिल्ली, कभी राजस्थान, कभी यूपी। क्यों हर दिन कोई बेटी कोई ‘पिड़िता’  कोई  Nirbhaya  बन जाती है। क्यों सरकारें चमचमाती सड़कें देने के बावजूद एक सुरक्षित ‘गली’ नहीं दे पा रही हैं। आज अगर आप गुस्से और जोश में हैं तो याद कीजिए, उस दिन को जब पिछली बार आपके खून में उबाल आया था, बिल्कुल आज ही की तरह, वो दिल्ली की सड़कें थी, बावजूद इसके आज फिर हाथरस की एक ‘निर्भया’ न्याय मांग रही है। यहां सवाल किसी सरकार से नहीं हैं, यहां सवाल आपसे है, क्योंकि वोट आप ही के हाथ से निकलता है! हाथरस की एक Nirbhaya  फिर ‘टीआरपी’ दे गई ? justice for.... ये देश आज फिर गुस्से में हैं। क्योंकि यूपी में जो हुआ, वो ‘कलंक’ है। मानवता पर, धर्म पर, राज पर और नीति पर। भला कैसे नवरात्रों में ‘कन्या’ पूजने का ढोंग कर लेते हम! गुनाहगारों को सजा मुकर्र करने की बजाय पुलिस पिड़िता की ही लाश को आधी रात के समय जंगल में कचरे और फूंस से मिटा दे, तो ‘दुष्कर्म की परिभाषा क्या होगी ? ध्यान देना। देश की आधी से ज्यादा आबादी गांवों में बसती है। गांव ही हैं जो अन्न उगाता है, फल उगाता है, पशुओं को पालता है। गांव के दूध से ...

कृपया फोलो/ Follow करें।

कुल पेज दृश्य