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संदेश

मैं बेटी हूं कोई सूरज नहीं जो कोहरे की चादर में दुबक जाऊं...

नमस्कार दोस्तों, ब्लॉग वाणी में आप सभी का स्वागत है मैं हूं आपकी दोस्त शालू वर्मा। सुबह हो चुकी है उठ जाइए। वैसे तो सूरज भी अभी कोहरे की चादर में दुबका हुआ है। पुरुष है ना, देर से उठेगा, आप सब की तरह। देखो ना, यह धरती सुबह 4: 00 बजे से जाग चुकी है। स्त्री है ना, जागना पड़ता है। हम सब स्त्रियों की तरह। दोस्तों, पुरुषों की तरह हमें कोई आवाज देकर नहीं उठाता। ...और ना ही हमें कोई अलार्म लगाना पड़ता है। हमें आवाज देती है ' ममता '। वो  ममता, जो हमारे पशुओं से जुड़ी है। वह ममता, जो हमारे अपने बच्चों से जुड़ी है। वह ममता, जो घर के रिश्तों व परिवार से जुड़ी है। आधे से ज्यादा भारत में हमारी बहनें यानी स्त्रियां महज इसलिए सुबह 4: 00 बजे उठ जाती हैं कि उन्हें अपने पशुओं- गाय ,भैंस, बकरी इत्यादि को चारा डालना होता है, पानी पिलाना होता है, उनका दूध निकालना होता है। फिर चाहे यह मौसम सर्दी, गर्मी, बरसात, कैसा भी क्यों ना हो। ... और दोस्तों, गांव- ढाणियों या फिर जिन घरों में पशु हों वही स्त्रियां जल्दी उठती हैं, ऐसा नहीं है। कस्बों और बड़े शहरों में भी स्त्रियों को तो जल्दी उठना ही पड़त...

गर्व करो ऐ भारतवासी अब अपना भी संविधान है...

नमस्कार दोस्तों, काव्य मंच में आप सभी का स्वागत है। मैं हूं आपकी दोस्त, शालू वर्मा। आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। आज बेटे हिरेन्द्र ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर काव्य लेखन किया और बहुत ही सुंदर ढंग से काव्य पाठ किया प्रस्तुत है उसी के अंश... आओ दोस्तों, तुम्हें सुनाऊं कहानी हिंदुस्तान की,  कैसे मिली आजादी हमको, कैसे रचना हुई संविधान की, सन 47 से पहले विधान अंग्रेजों का ही चलता था, रोटी, कपड़ा और मकान मांगने पर चाबुक उनका चलता था, सत्याग्रह बापू का देख, अंग्रेजों का सिंहासन डोला उठा, लाठीचार्ज हुआ लाला पर,  तो आजाद, भगत सिंह का खून खौल उठा, वीर सपूतों की कुर्बानी ने आजादी की अलख जगाई थी, तब जाकर सन 47 में हमने अपनी आजादी पाई थी, इस धरा का इस धरती का जैसे एक विधान है, गर्व करो ऐ भारतवासी अब  अपना भी एक संविधान है, बाबा साहेब अंबेडकर ने  दुनिया के संविधानों को खंगाला, और 2 साल 11 महीने 18 दिन में संविधान बना डाला, आओ दोस्तों तुम्हें सुनाऊं कहानी हिंदुस्तान की कैसे मिली आजादी हम को  कैसे रचना हुई संविधान की...

दुल्हन जब किसी घर की दहलीज में प्रवेश करती है...

याद रखिए शादी के बाद लड़कियों को अपना पीहर छोड़कर ससुराल में रचना बसना होता है, सो लड़कों से ज्यादा जिंदगी उनकी बदलती है। दोस्तों, ब्लॉगवाणी में  आप सभी का स्वागत है। मैं हूं आपकी दोस्त शालू वर्मा। दोस्तों, शादी विवाह का सीजन है, रस्मों रिवाजों का महीना है, तो आइए आज बात कर लेते हैं दुल्हन की। उस दुल्हन की जो पूरे आयोजन की धुरी होती है। उस दुल्हन की जिसकी तस्वीर दीप की लौ से मिलती-जुलती है। जैसे मंदिर में दीप रखा जाता है, वैसे ही घर में दुल्हन आती है। मंदिर सजा हो तो दीप से रोनक दोगुनी हो जाती है‌। वाकई हैरानी की बात है लेकिन सच है शादी का वास्ता केवल दुल्हन से ही जोड़ कर देखा जाता है। शादी केवल एक आयोजन है जिसमें ढेर सारे लोग शामिल होते हैं दुल्हन की अपनी रीत होती है बहुत सारे कार्यक्रम, रश्में और धूम होती है, लेकिन जिनमें दुल्हन शामिल हो। दिलचस्प केवल उन्हें ही माना जाता है या यूं कहें कि जिक्र केवल उन्हीं का होता है। जिक्र होता भी केवल दुल्हन का ही है, दूल्हे को लड़का कहकर बुलाया जाता है और लड़के का व्यक्तित्व बहुत हद तक उसकी नौकरी से और कुछ हद तक उसके रूप से आंक लिया...

कमरा नंबर 39... हास्य मनोरंजक लेख। जरूर पढ़ें।

एक पंडित एक होटल में जाता है। और वहां पर मैनेजर को बुलाता है, और कहता है कि "क्या रूमनंबर 39 खाली है ? मैनेजर:- हां वो खाली है आप वो रूम ले सकते हैं...। पंडित:- ठीक है मुझे वो रूम दे दो, और  मुझे एक चाकू, एक 3 इंच का काला धागा और एक 79 ग्राम का संतरा भी दे दो...। मैनेजर:- ठीक है...और हां मेरा कमरा आपके कमरे के ठीक सामने है। अगर आपको कोई दिक्कत होती है तो तुम मुझे आवाज दे देना...। पंडित:- ठीक है... रात को......पंडित के कमरे से तेजी से चिखने चिल्लाने की  और प्लेटों के टूटने की आवाज आने लगती हैं। इन आवाजों के कारण मैनेजर सो भी नही पाता। ....और वो रात भर इस ख्याल से बैचेन होने लगता है, कि आखिर उस कमरे में हो क्या रहा है? अगली सुबह....... जैसे ही मैनेजर पंडित के कमरे में जाता है, वहाँ पर उसे पता चलता है कि पंडित होटल से चला गया है। ...और कमरे में सब कुछ वैसे का वैसा ही है।...और टेबल पर चाकू रखा हुआ है। मैनेजर ये सोचने लगता है कि जो उसने सुना कहीं उसका मात्र वहम तो नही था।...और ऐसे ही एक साल बीत जाता है। एक साल बाद........ वही पंडित फिर से...

स्वाभिमानी ....Motivational Story

किसी गाँव में रहने वाला एक छोटा लड़का अपने दोस्तों के साथ गंगा नदी के पार मेला देखने गया। शाम को वापस लौटते समय जब सभी दोस्त नदी किनारे पहुंचे तो लड़के ने नाव के किराये के लिए जेब में हाथ डाला। जेब में एक पाई भी नहीं थी। लड़का वहीं ठहर गया। उसने अपने दोस्तों से कहा कि वह और थोड़ी देर मेला देखेगा। वह नहीं चाहता था कि उसे अपने दोस्तों से नाव का किराया लेना पड़े। उसका स्वाभिमान (SVABHIMAN) उसे इसकी अनुमति नहीं दे रहा था। उसके दोस्त नाव में बैठकर नदी पार चले गए। जब उनकी नाव आँखों से ओझल हो गई तब लड़के ने अपने कपड़े उतारकर उन्हें सर पर लपेट लिया और नदी में उतरगया। उस समय नदी उफान पर थी। बड़े-से-बड़ा तैराक भी आधे मील चौड़े पाट कोपार करने की हिम्मत नहीं कर सकता था। पास खड़े मल्लाहों ने भी लड़के को रोकनेकी कोशिश की। उस लड़के ने किसी की न सुनी और किसी भी खतरे की परवाह न करते हुए वह नदीमें तैरने लगा। पानी का बहाव तेज़ था और नदी भी काफी गहरी थी। रास्ते में एक नाव वाले ने उसे अपनी नाव में सवार होने के लिए कहा लेकिन वह लड़का रुका नहीं, तैरता गया। कुछ देर बाद वह सकुशल दूसरी ओर पहुँच गया। उस लड़के का न...

जा मेरी मोहब्बत के चर्चे सरे बाजार कर दे...Hirendra prajapati ki Aawaz m शानदार काव्य पाठ.Kavyamanch

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महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे विनोबा भावे...

नमस्कार दोस्तों, महापुरुषों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती। उनका लोक हितकारी चिंतन युगों युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता है। ब्लॉगवाणी में आज हम एक ऐसे ही प्रकाश स्तंभ की चर्चा करेंगे, जो ना केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी रहे बल्कि एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थे और पूरा देश जिन्हें राष्ट्रीय अध्यापक का सम्मान देता है। जी हां, आज हम बात करेंगे आचार्य विनोबा भावे की। आचार्य विनोबा भावे जिन्हें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी भी कहा गया। उनकी आध्यात्मिक चेतना समाज और व्यक्ति से जुड़ी थी, इसी कारण संत स्वभाव के बावजूद उनमें राजनीतिक सक्रियता भी थी।  उन्होंने सामाजिक अन्याय और धार्मिक विषमता का मुकाबला करने के लिए देश की जनता को स्वयंसेवी होने का आह्वान किया। उन्होंने देश की जनता के हितों के लिए जो आंदोलन चलाएं वह अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं है। 1951 की बात है, आजाद हिंदुस्तान को जन्म लिए बस 4 ही साल बीते थे। देश में भयंकर गरीबी थी। लोगों के पास खाने के लिए रोटी नहीं थी। रोटी बनाने के लिए अन्न नहीं था। अन्न उपजाने के लिए जमीन नहीं थ...

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