नमस्कार दोस्तों, ब्लॉगवाणी पर आपका स्वागत है। मैं हूं आपकी दोस्त शालू वर्मा। आज हम बात करेंगे शिक्षा यानी सीख की। सीख अच्छी या बुरी कैसी भी हो सकती है बस हमारा नजरिया सही होना चाहिए। एक ही कार्य के प्रति अलग-अलग लोगों का अलग अलग नजरिया होता है बस हमें उस नजरिए के द्वारा ही पता चलता है हम कुछ सीख रहे हैं या नहीं। वैसे सीखना जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। एक व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ न कुछ सीखता है।
दोस्तों, हम अपनी रोजमर्रा जिंदगी में भी हर घड़ी हर पल कुछ न कुछ सीखते हैं। इस सीखने की प्रक्रिया के कारण ही रूढ़िवादी विचारों तकनीकों को छोड़कर नई तकनीकों को आत्मसात किया गया है। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी तो युवा वर्ग को भारत की शक्ति मानते हैं और हमेशा कुछ नया करने पर बल देते हैं।
वैसे, आपको बता दें कि सीखना तकनीक या फिर किसी नई खोज को ही नहीं कहते बल्कि एक नवजात शिशु का जन्म लेने के पश्चात पहली बार रोना भी सीखना ही होता है। प्राचीन समय में बालक सीखने के लिए आश्रमों में जाते थे। वहां पर ऋषि-मुनियों की शरण में रहकर दैनिक जीवन को चलाने के गुर सीखते थे। आज आश्रमों की जगह स्कूल-कॉलेजों ने भले ही ले ली है परंतु सीखने का जज्बा न तो आज कम है और ना हीं उस समय। वैसे दोस्तों, आपको बता दें कि सीखने की कोई उम्र होती है और ना ही सीमा। अब आप जब चाहे तब सीख सकते हैं।
एक नन्हे जीव चींटी से लेकर हाथी तक हमें कुछ ना कुछ सिखा सकता है। बस हममें सीखने की ललक व जज्बा होना चाहिए। कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिन्हें सीखने में हमें वक्त लगता है तो कुछ कार्य चलते- फिरते सीखे जाते हैं। कुछ अनुकरण के द्वारा तो कुछ स्वयं सीख जाते हैं। सीखते इंसान ही नहीं, अपितु जीव-जंतु भी हैं।
एक कबूतर के बच्चे को ही लीजिए। अंडों से निकलने के बाद बच्चों की जिंदगी से जद्दोजहद शुरू हो जाती है। जो बच्चे घोसले तक सीमित थे, धीरे-धीरे अपने घोसलों से बाहर निकलना और उड़ने की कोशिश करते हैं। आप देखेंगे कि जो बच्चे कल तक फड़फड़ाना भी नहीं जानते थे अब उड़ना सीख चुके हैं क्योंकि उन्हें अब आकाश जो नापना है।
हमारे नए - नए नेता जो बोलना तक नहीं जानते, कुछ दिनों के बाद संसद में ठहाके लगाते नजर आते हैं। तो दोस्तों, आपको बता दें कि जिसने जन्म लिया है कुछ तो सीखेगा ही वरना उसका सर्वनाश हो जाएगा प्रकृति से सामंजस्य बिठाने के लिए सीखना तो जरूरी है।
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