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हमारे राज्य पशु पर ऑस्ट्रेलिया में मंडरा रही मौत...?

।। श्रवण सिंह राठौड़ की कलम से।। 


हमारे रेगिस्तानी जहाज ऊंट के लिए बहुत ही बुरी खबर हैं। राजस्थान में ऊंट को संरक्षण देने के लिए 2014 से ही राज्य पशु का दर्जा प्राप्त है। उधर आपदा - आग की तबाही झेल रहा ऑस्ट्रेलिया 10 हजार ऊंटों को मारेगावजह, पानी की कमी। जल संकट। आदिवासी समुदाय की मांग पर ऊंटों को मारने का काम आज से शुरू हो चुका है। इस खबर ने मुझे अंदर तक हिलाकर रख दिया है। ऊंटों को मारना, पूरी तरह प्रकृति के खिलाफ और अमानवीय है।

राजस्थान में भी भारी जल संकट है। ऐसे में पानी की कीमत हमको भी समझने की जरूरत है। ऑस्ट्रेलिया में ऊंटों को गोली मारने के पीछे असली वजह वहां पानी की भारी कमी होना बताया जा रहा है। वहां के आदिवासी समुदाय का कहना है कि जंगली ऊंट हमारे संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा रहे और हमारे हिस्से का पानी पी जाते हैं। इस वजह से आदिवासी समुदाय की मांग पर वहां की सरकार ने आनन-फानन में निर्णय लेकर आज बुधवार से हेलीकॉप्टर में बैठे शुटर के जरिए ऊंटों को गोली  मारने के आदेश दिए गए हैं। अभी 10000 ऊंटों को मारा जाएगा। इस खबर से मैं बहुत आहत हूं। ये विकृत मानसिकता है। ऊंटों को अगर वो पानी पिलाने में सक्षम नहीं है तो फिर जहाजों में भरकर भारत में क्यों नहीं भेज देते।


राजस्थान में ऊंट हमारे जीवन का हिस्सा था, हैं और रहेगा।। हमारे रेबारी, देवासी  गुर्जर समेत अन्य कई समुदाय ऊंटों का सदियों से पालन पोषण करते आए हैं। उन्होंने अपने हिस्से निवाला पशुओं को खिला कर पाला और पोषा है।
इस तरह पानी के संकट को लेकर ऊंटों को मारने का यह आदेश बहुत ही चिंता में डालने वाला है। ये सोच मुझे इंसान के स्वार्थ को दर्शाती है।

विश्व में पशु अधिकारों से जुड़े हुए संगठनों को आगे आना चाहिए और यूएनओ को दखल देकर के ऊंटों को मारने के इस तुगलकी फरमान पर तत्काल रोक लगवाने को लेकर ऑस्ट्रेलिया सरकार से बात करनी चाहिए। विश्व समुदाय को ऑस्ट्रेलिया में आग की वजह से आई आपदा और पानी की कमी को भी समझने की जरूरत है। सब मिलकर के संकट का हल करें। आज ऊंटों को वहां पानी की कमी वजह से मारा जा रहा है,  कल अन्य जानवरों को मारा जाएगा,  उसके बाद हो सकता है इंसानों का नंबर आ जाये। हमें पानी के विश्वव्यापी संकट को समझने की जरूरत है।

खबरों के अनुसार ऑस्ट्रेलिया अब 10 हजार ऊंटों को मारने जा रहा है। कारण ये बताया हैं कि  ऊंट साल भर में एक टन मीथेन उत्सर्जित करते हैं, जो इतनी ही कार्बन डाईऑक्साइड के बराबर है। यही नहीं, यह सड़कों पर अतिरिक्त 4 लाख कारों के बराबर भी है।इसके अलावा, ऊंटों की बढ़ती जनसंख्या भी देश के लिए समस्या बन रही है,क्योंकि यह सूखे वाले इलाके में पानी पी जाते हैं। स्थानीय संगठन एपीवाई का कहना है कि ऊंटों को मारे जाने का एक कारण दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया में पानी की कमी होना भी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि हम पानी की किल्लत की वजह से एसी का पानी भी स्टोर कर रखते हैं। ये ऊंट इस पानी को पीने आ जाते हैं। ये घर के आसपास घूमते हैं। फेंसिंग को भी नुकसान पहुंचाते हैं। आज बुधवार से हेलिकॉप्टर से पेशेवर शूटर ऊंटों को मारना शुरू कर चुके हैं।  मध्य ऑस्ट्रेलिया में इनकी आबादी 12 लाख से अधिक है।

जंगली ऊंट की आबादी हर 9 साल में दोगुनी हो जाती है
स्थानीय प्रशासन का दावा है कि जंगली ऊंट की आबादी हर नौ साल में दोगुनी हो जाती है। यहां वर्ष 2009 से 2013 तक भी 1.60 लाख ऊंटों को मारा गया था। इसके अलावा, रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि ऊंट ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रहे हैं। ऊंट साल भर में एक टन मीथेन उत्सर्जित करते हैं, जो इतनी ही कार्बन डाईऑक्साइड के बराबर है।

दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में सूखा
दक्षिण ऑस्ट्रेलिया सूखे की वजह से पानी की किल्लत है। सबसे खराब हालात न्यू साउथ वेल्स में हैं। जमीन में नमी तक नहीं है। घास तक नहीं बची है। पशु भूख और पानी से मर रहे हैं। लोग शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। यहां के 57 फीसदी हिस्से को सूखाग्रस्त घोषित किया गया है। इवांस प्लेन में स्थित बाथर्स्ट पुलिस डिपार्टमेंट का कहना है कि इस वक्त शहर में मौजूद बांध में पानी का स्तर 37% पहुंच गया है। यह बांध बनने के बाद से उसमें पानी का सबसे कम स्तर है। गर्मी की वजह से हर हफ्ते पानी का 1.1% की दर से वाष्पीकरण हो रहा है। फिलहाल बारिश के भी कोई आसार नहीं दिख रहे।

हमारे राजस्थान में 1991 में ऊटों की संख्या 10 लाख थी। उसके बाद से ऊंट लगातार घटते जा रहे हैं। आज राजस्थान में बड़ी मुश्किल 2 लाख ऊंट बचे हुए होंगे।  राजस्थान सरकार ने 2014 में ऊंट को राज्य पशु का दर्जा देकर उसे बचाने का प्रयास शुरू किया है।  नए ऊंट के पैदा होने पर ₹10000 प्रोत्साहन राशि देने का भी प्रावधान है। इसके बावजूद ऊंट प्रजनन में खास बढ़ोतरी नहीं हुई। इसकी असली वजह पशुपालक समुदाय की ऊंट पालन के प्रति घटती रुचि है।  आज ऊंटों का पालन बहुत मुश्किल हो गया है।  नई पीढ़ी इस दुष्कर कार्य को करने से कतरा रही है। ऊंटों का पालन आज की तारीख में कोई ज्यादा लाभदायक व्यवसाय नहीं है। हमारे भी दादोसा के टाइम पहले 20 ऊंट थे। मुझे याद है हमारे गांव में पहले हर देवासी के घर में 20 से लेकर 100 ऊंट थे । हमारे सवजी बा देवासी के सबसे ज्यादा ऊंट होते थे। आज पूरे गांव में एक भी देवासी परिवार के घर ऊंट नहीं बचे है। 

आज बहुत कम लोग ऊंट रख पा रहे हैं। उसकी वजह घटते चारागाह भी है। चारे की कमी है। नई पीढ़ी पढ़ने के बाद इस ऊंट पालन को हेय दृष्टि से देखने लगी है। ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। ऊंट का दूध औषधीय गुणों से भरपूर होता है।
सरकार को भी ऊंट से प्राप्त होने वाले उत्पादों को मार्केटिंग और ब्रांडिंग के जरिए बढ़ावा देना होगा। आमदनी होगी तो पशुपालक भी ऊंट रखना शुरू कर देंगे। आमदनी से जोड़कर ऊंट पालन के प्रति प्रति रुचि पैदा की जा सकती है।
खुदा खैर करें। आ ओ, हम सब भारत के लोग आज से ही पानी को बचाना शुरू करें, वरना कल हमारे यहां भी ऐसी ही भयावह हालात बन सकते हैं। हम सब ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वो ऑस्ट्रेलिया को पानी के संकट से उबारने के लिए वहां भरपूर बारिश करें। जिससे ऊंटों समेत लाखों - करोड़ों जीवों का जीवन बच सकें।
सादर :  ।। श्रवण सिंह राठौड़।।
#savecamels#
(साभार- श्रवण सिंह राठोड़ की फेसबुक वाल से)

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