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'कॉकरोच' से डरती 'जिंदगी'

एक रेस्टोरेंट में अचानक ही एक कॉकरोच उड़ते हुए आया और एक महिला की कलाई पर बैठ गया। महिला भयभीत हो गयी और उछल-उछल कर चिल्लाने लगी…कॉकरोच…कॉकरोच… उसे इस तरह घबराया देख उसके साथ आये बाकी लोग भी पैनिक हो गए …इस आपाधापी में महिला ने एक बार तेजी से हाथ झटका और कॉकरोच उसकी कलाई से छटक कर उसके साथ ही आई एक दूसरी महिला के ऊपर जा गिरा। अब इस महिला के चिल्लाने की बारी थी…वो भी पहली महिला की तरह ही घबरा गयी और जोर-जोर से चिल्लाने लगी! दूर खड़ा वेटर ये सब देख रहा था, वह महिला की मदद के लिए उसके करीब पहुंचा कि तभी कॉकरोच उड़ कर उसी के कंधे पर जा बैठा। वेटर चुपचाप खड़ा रहा।  मानो उसे इससे कोई फर्क ही ना पड़ा, वह ध्यान से कॉकरोच की गतिविधियाँ देखने लगा और एक सही मौका देख कर उसने पास रखा नैपकिन पेपर उठाया और कॉकरोच को पकड़ कर बाहर फेंक दिया। मैं वहां बैठ कर कॉफ़ी पी रहा था और ये सब देखकर मेरे मन में एक सवाल आया….क्या उन महिलाओं के साथ जो कुछ भी हुआ उसके लिए वो कॉकरोच जिम्मेदार था? यदि हाँ, तो भला वो वेटर क्यों नहीं घबराया? बल्कि उसने तो बिना परेशान हुए पूरी सिचुएशन को पेर्फेक्ट्ली हैंडल किया। दरअसल, वो क...

Meaning of love...चल प्यार करें...

चैटिंग से सिर्फ सैटिंग होती है, प्यार नहीं। क्योंकि प्यार में फीलिंग होती है, इमोसंस होते हैं, दर्द होता है, चाहत होती है। ...और प्यार दिल से होता है !! चल प्यार करें... प्यार यानी Love  , आज इस शब्द के मायने क्या हैं? क्या प्यार का अर्थ (Meaning of love) वर्तमान में देह की चाहत, भूख, या हवस बन गया है ? अग़र नहीं, तो फिर ‘सुशांत’ जैसे नौजवान ‘शांत’ क्यों हो रहे हैं? क्यों ‘जिस्म’ में दौड़ता खून अपना रंग नहीं पहचान पा रहा है ? क्यों रिश्तों की डोर में ‘प्यार’ उलझता जा रहा है ?....अगर इन सब सवालों के जवाब आपके पास हैं तो बेशक आप इस आर्टिकल को बिना पढ़े यहीं छोड़ सकते हैं, लेकिन अग़र आपको इन सवालों का जवाब नहीं सूझ रहा है तो आपको यह आर्टिकल जरूर पढ़ना चाहिए। ...क्योंकि अखबारों में छपने वाली खबरें या कहानी ‘आपके घर की भी हो सकती है।’ चलिए अब इस Article  की शुरूआत करते हैं। 👀 केस -1. रविना की शादी को दो साल ही हुए थे, या यूं कहें कि जैसे तैसे रविना ने गुटखाबाज पति के साथ दो साल निकाल दिए थे। पति में सिवाय गुटखा खाने के कोई ऐब नहीं था। लेकिन रविना को शादी से पहले यह बात किसी ने नहीं ब...

नेता, जनप्रतिनिधि, भामाशाह !! छलावा बन रहे शब्द!

दोस्तों, कहीं सुना या पढ़ा तो होगा आपने भी कभी, कि ‘ये शब्द काटते हैं’। लेकिन यह समझ नहीं आया होगा कि कौनसे ‘शब्द’। चलिए मैं बताता हूं। लेकिन हां, अच्छा लगे तो इस आलेख को दूसरों के साथ साझा/शेयर जरूर कर देना। दोस्तों, कोरोना महामारी के बीच आए दिन अखबारों में, टीवी चैनलों पर सैकड़ों हजारों समाचार आपने पढ़ लिए होगें कि ‘फलां भामाशाह ने इतने रूपए दिए। फलां नेता, जनप्रतिनिधि या जनसेवक ने सीएम या पीएम फण्ड में दान दिया। कभी-कभी तो आपने ऐसे नेताओं की अस्पतालों में फल बांटते की तस्वीरें भी देखी होंगी। जिसमें एक ही आदमी को एक साथ चार -पांच लोग मिलकर एक केला या सेब भेंट करते हैं। लेकिन जो दिखता है, सब सच नहीं होता। धोखा होता है, मरीज के साथ, छलावा होता है पाठकों के साथ। एक मरीज, एक फल और देने वाले चार-पांच। इसे सस्ते में लोकप्रियता प्राप्त करने का फण्डा कहते हैं। इसे करने के लिए क्या चाहिए। एक सफेद कुर्ता-पायजामा, 20 से 25 रू किलो के भाव के पांच-सात किलो केले। बस। बाकी पिछलग्गू आदमी तो फोटो खिंचवाते समय और भी मिल ही जाएगें। अब पत्रकारों को फोन करो। शहर छोटा हो तो पत्रकार भी तैयार मिलेगें। छोटे...

दिल है कि मानता नहीं !!

- Vikas Verma जी हां, दिल का मामला ही कुछ ऐसा होता है, जिस काम को करने के लिए मना किया जाता है, जब तक उसे कर ना ले, चैन पड़ता ही नहीं है। ‘कहीं लिखा हुआ है कि - दीवार के पार देखना मना हैै।’...तो हम तो देखेगें, नहीं तो दिल को सुकुन नहीं मिलेगा। कहीं लिखा है कि यहां थूकना मना है, तो हम तो थूकेगें, क्योंकि इसी में दिल की रजा़ है, इसी में मजा़ है और इसी में शान है, अभिमान है !! अब देखो ना, ‘सरकार’ कह रही है, सब कह रहे हैं। रेडियो, अखबार, टीवी सब यही कह रहे हैं, कोरोना महामारी है ! मास्क लगाओ, दूरी बनाओ ! पर हम तो ना मास्क लगाएगें, ना हाथों पर सैनेटाईजर लगाएगें और ना सोशल डिस्टेंस बनानी है ! क्यों करें, आखिर मरना तो एक दिन सबको है ! मौत लिखी होगी तो मर जाएगें, नहीं तो क्या करेगा कोरोना !! ...और फिर कोरोना यहां थोड़ी ना है, वो तो वहीं तक है। अगर कोरोना इतना ही खतरनाक होता तो डाॅक्टर, कम्पाउण्डर, पुलिस और ये प्रेस वाले ऐसे ही थोड़ी ना घूमते। इनको भी तो जान प्यारी होगी। ...और फिर जब ये ही नहीं डरते, तो मैं क्यों डरूं ? मेरा दिल इतना कमजोर थोड़ी ना है !! कोटपूतली में मिल रहे लगातार कोरोना...

सावधान! कार्य प्रगति पर है...असुविधा के लिए खेद है!!

हथौड़े से महल गढ़ने वाले हाथ और इंसान का बोझ ढ़ोने वाले कंधे जिंदगी से जंग की 'महाभारत' में खुद से ही भिड़ गए हैं। हजारों मील की दौड़ लगाकर घर की चौखट पर दम तोड़ने की चाह में दौड़े जा रहे हैं।  कह रहे हैं हमें कोरोना नहीं, भूख मार डालेगी। - Vikas Verma, Editor. नमस्कार। मुझे यकीन है कि इस तरह का बोर्ड आपने अपने जीवन में कभी ना कभी तो किसी सड़क किनारे जरूर पढ़ा होगा। जी हां, जब कहीं सड़क निर्माण का काम हो, पानी की पाइप लाइन बिछानी हो, टेलीफोन या विद्युत केबिल ठीक करने हो... तो अक्सर इस तरह का बोर्ड लगा दिया जाता है। ठीक वैसे ही आज आपको यह भी यकीन करना होगा कि प्रकृति ने भू - लोक के कुछ हिस्से को लॉक डाउन दिया है। कुछ रिकवर करने के लिए,  कुछ रिपेयर करने के लिए। जरा एक बार सांस खींचकर तो देखिए कुछ तो फर्क आया होगा इन हवाओं में।  मानव आत्मा तो बेवजह चित्कार रही है। देखिए तो फिजाओं में कितनी शांति है।  ना आंखों में जलन,  ना कानो में शोर, ना सड़कों पर खून।  हां, मानवता की  'महाभारत' अब भी जारी है। हथौड़े से महल गढ़ने वाले हाथ और इंसान...

जिस होलिका ने प्रहलाद जैसे प्रभु भक्त को जलाने का प्रयत्न किया, महिलाएं उसका पूजन क्यों करती हैं ?

जी हां दोस्तों, आपने और हमने अब तक की तमाम कहानी और किस्सों में यही सुना है की होलिका ने भक्त प्रहलाद को जलाने की मंशा से ही अपनी गोद में बिठाया था।... और हमारी तरह आपके भी मन में यह सवाल तो कभी ना कभी आया ही होगा कि भक्त प्रह्लाद को जलाने वाली होलिका का पूजन क्यों किया जाता है ? और क्यों घर की महिलाएं इस दिन होलिका का पूजन करती हैं और व्रत रखती हैं ? आज हमारा आपसे यही सवाल है कि जिस होलिका ने प्रहलाद जैसे प्रभु भक्त को जलाने का प्रयत्न किया, उसका हजारों वर्षों से हम पूजन किसलिए करते हैं ? अगर आपके पास इसका कोई जवाब हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर लिखना,  हम तथ्यात्मक रूप से इसका जवाब खोजने में आपकी मदद करेंगे। ... और उचित हुआ तो अगले आलेख में आपके जवाब या टिप्पणी का उल्लेख जरूर किया जाएगा।

यह समय समय की नहीं, समझ- समझ की बात है...😎😀

*गुम हो गए संयुक्त परिवार* *एक वो दौर था* जब पति,  *अपनी भाभी को आवाज़ लगाकर*  घर आने की खबर अपनी पत्नी को देता था ।   पत्नी की *छनकती पायल और खनकते कंगन* बड़े उतावलेपन के साथ पति का स्वागत करते थे ।  बाऊजी की बातों का.. *”हाँ बाऊजी"*   *"जी बाऊजी"*' के अलावा दूसरा जवाब नही होता था । *आज बेटा बाप से बड़ा हो गया, रिश्तों का केवल नाम रह गया*  ये *"समय-समय"* की नही, *"समझ-समझ"* की बात है  बीवी से तो दूर, बड़ो के सामने, अपने बच्चों तक से बात नही करते थे  *आज बड़े बैठे रहते हैं हम सिर्फ बीवी* से बात करते हैं दादाजी के कंधे तो मानो, पोतों-पोतियों के लिए  आरक्षित होते थे, *काका* ही  *भतीजों के दोस्त हुआ करते थे ।* आज वही दादू - दादी   *वृद्धाश्रम* की पहचान है,   *चाचा - चाची* बस  *रिश्तेदारों की सूची का नाम है ।* बड़े पापा सभी का ख्याल रखते थे, अपने बेटे के लिए  जो खिलौना खरीदा वैसा ही खिलौना परिवार के सभी बच्चों के लिए लाते थे । *'ताऊजी'*  आज *सिर्फ पहचान* रह गए और,......   *छोटे के ...

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