सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

द्वितीय खेल कूद व दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन, ग्रामीणों ने फूल मालाओं से स्वागत किया

@BEHROR. जखराना ग्राम में संतोषी माता की बगीची मे द्वितीय खेल कूद व दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजकुमार यादव आयकर आयुक्त गुरुग्राम रहे। इस प्रतियोगिता में 5 वर्ष से 70 वर्ष तक के लोगों ने भाग लिया। सभी ग्रामीणों ने फूल मालाओं से उनका स्वागत किया। प्रतियोगिता में दूर-दूर से आए लगभग 200 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।



200 मीटर में प्रथम मोहित, द्वितीय मोहन और तृतीय स्थान पर अनिल मीणा रहे। वहीं 800 मीटर ओपन में प्रथम नवीन कमानिया, द्वितीय रवि मुंडावर और तृतीय स्थान पर विकास घासोली रहे। 50 वर्ष से अधिक में प्रथम रामकिशन शर्मा हरियाणा, द्वितीय कृष्ण मास्टर जखराना और तृतीय स्थान पर गजेंद्र जोनाइचा खुर्द रहे।

इस अवसर पर जखराना के सभी पड़ोसी गांव के सरपंच व गणमान्य लोग उपस्थित रहे। मुख्य अतिथि ने बताया कि मनुष्य के शारीरिक व मानसिक विकास के लिए खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन समय-समय पर करवाना समाज के लिए बहुत जरूरी है। संतोष देवी चैरिटेबल ट्रस्ट क्षेत्र में समय-समय पर खेलकूद प्रतियोगिताएं व अन्य सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है। इस प्रकार की प्रतियोगिताओं से समाज में आपसी प्यार व सौहार्द बढ़ता है नवयुवकों को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है और आश्वासन दिया कि समय-समय पर इस प्रकार की खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती रहेंगी। जिससे समाज की प्रतिभाएं निखर के आगे अपना मुकाम हासिल कर सके।

इस अवसर पर सरपंच पिता शक्ति सिंह, निम्भोर सरपंच सुरेश, रामनिवास, गजराज, नरेंद्र, महेन्द, राजेंद्र लोका, नरेश, प्रकाश पहलवान, नंदराम, सुरेश सिंह मेहता, ओमप्रकाश साहब, अक्षत शर्मा, विकास, कालूराम, दीवान, सुमित कुमार, सतपाल, विकास, पंकज, जितेंद्र, रमद, दिनेश, नरेंद्र, प्रेमपाल एवं ग्रामवासी मौजूद रहे।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

छाछ में मक्खी गिर जाए तो आप छाछ फेंक देते हैं और घी में गिर जाए तो...?

...चलिए पहले बात पूरी करता हूं। छाछ में मक्खी गिर जाए तो आप  मक्खी सहित पूरी छाछ फेंक देते हैं और घी में गिर जाए तो आप  केवल मक्खी निकाल कर फेंक देते हैं।... तब आप घी को नहीं फेंकते। क्यों ? कभी पूछा अपने आप से ! यही तो... मानसिकता है 'स्वार्थ' व 'अर्थ' से भरी। हर व्यक्ति, वस्तु और पद का मूल्यांकन 'आर्थिक' हो गया है। पूरा देश भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी पर उबाल खा रहा है।  सोशल मीडिया, सिनेमा, टीवी,  समाचार पत्र... हर जगह भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी पर बहस हो रही है।  घूस लेते कर्मचारियों के वीडियो  एक-दूसरे के साथ शेयर किए जा रहे हैं। थू थू करते है,  मन भर के गालियां देते हैं।... अच्छी बात है ऐसा होना भी चाहिए। मैं तो यह भी कहता हूं कि घूस लेने वालों का मुंह काला करके उन्हें पूरे शहर घुमाना चाहिए ताकि फिर कोई दूसरा ऐसा करने की हिम्मत ना कर सके। ... लेकिन मेरा मुद्दा यह नहीं है। मैं बात कर रहा हूं 'अपनी ईमानदारी' की। वह कहां गायब हो जाती है जब हमें खुद को कोई काम करवाने के लिए  'घूसखोर' ढूंढना पड़ता है। ध्यान रहे, आप मेरे इस आरोप से बच नहीं सकते। अग...

दिल है कि मानता नहीं !!

- Vikas Verma जी हां, दिल का मामला ही कुछ ऐसा होता है, जिस काम को करने के लिए मना किया जाता है, जब तक उसे कर ना ले, चैन पड़ता ही नहीं है। ‘कहीं लिखा हुआ है कि - दीवार के पार देखना मना हैै।’...तो हम तो देखेगें, नहीं तो दिल को सुकुन नहीं मिलेगा। कहीं लिखा है कि यहां थूकना मना है, तो हम तो थूकेगें, क्योंकि इसी में दिल की रजा़ है, इसी में मजा़ है और इसी में शान है, अभिमान है !! अब देखो ना, ‘सरकार’ कह रही है, सब कह रहे हैं। रेडियो, अखबार, टीवी सब यही कह रहे हैं, कोरोना महामारी है ! मास्क लगाओ, दूरी बनाओ ! पर हम तो ना मास्क लगाएगें, ना हाथों पर सैनेटाईजर लगाएगें और ना सोशल डिस्टेंस बनानी है ! क्यों करें, आखिर मरना तो एक दिन सबको है ! मौत लिखी होगी तो मर जाएगें, नहीं तो क्या करेगा कोरोना !! ...और फिर कोरोना यहां थोड़ी ना है, वो तो वहीं तक है। अगर कोरोना इतना ही खतरनाक होता तो डाॅक्टर, कम्पाउण्डर, पुलिस और ये प्रेस वाले ऐसे ही थोड़ी ना घूमते। इनको भी तो जान प्यारी होगी। ...और फिर जब ये ही नहीं डरते, तो मैं क्यों डरूं ? मेरा दिल इतना कमजोर थोड़ी ना है !! कोटपूतली में मिल रहे लगातार कोरोना...

Meaning of love...चल प्यार करें...

चैटिंग से सिर्फ सैटिंग होती है, प्यार नहीं। क्योंकि प्यार में फीलिंग होती है, इमोसंस होते हैं, दर्द होता है, चाहत होती है। ...और प्यार दिल से होता है !! चल प्यार करें... प्यार यानी Love  , आज इस शब्द के मायने क्या हैं? क्या प्यार का अर्थ (Meaning of love) वर्तमान में देह की चाहत, भूख, या हवस बन गया है ? अग़र नहीं, तो फिर ‘सुशांत’ जैसे नौजवान ‘शांत’ क्यों हो रहे हैं? क्यों ‘जिस्म’ में दौड़ता खून अपना रंग नहीं पहचान पा रहा है ? क्यों रिश्तों की डोर में ‘प्यार’ उलझता जा रहा है ?....अगर इन सब सवालों के जवाब आपके पास हैं तो बेशक आप इस आर्टिकल को बिना पढ़े यहीं छोड़ सकते हैं, लेकिन अग़र आपको इन सवालों का जवाब नहीं सूझ रहा है तो आपको यह आर्टिकल जरूर पढ़ना चाहिए। ...क्योंकि अखबारों में छपने वाली खबरें या कहानी ‘आपके घर की भी हो सकती है।’ चलिए अब इस Article  की शुरूआत करते हैं। 👀 केस -1. रविना की शादी को दो साल ही हुए थे, या यूं कहें कि जैसे तैसे रविना ने गुटखाबाज पति के साथ दो साल निकाल दिए थे। पति में सिवाय गुटखा खाने के कोई ऐब नहीं था। लेकिन रविना को शादी से पहले यह बात किसी ने नहीं ब...

कृपया फोलो/ Follow करें।

कुल पेज दृश्य