साभार- राजस्थान पत्रिका
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जी हां, यही है आज के सभ्य समाज की सच्ची तस्वीर, जो आज के अंक में अपने मुख पृष्ठ पर राजस्थान पत्रिका ने प्रकाशित की है। यह तस्वीर आईना है, उस शिक्षित और सभ्य समाज का, जो महिलाओं के अधिकारों की बात करता है। यह तस्वीर समाज के पुरूषों की उस दोहरी मानसिकता पर हंस-हंसकर सवाल कर रही है कि ‘बताओ जरा, 50 प्रतिशत की भागीदारी वह ‘नारी’ कहां हैं? कब तक नारी के चेहरे पर घुंघट लपेटकर उस पर अपना (पुरूष) मुखौटा चिपकाते रहोगे।
...और यह तो महज एक तस्वीर है! आज तो जब पंचायत चुनावों का बिगुल बज चुका है तो ग्राम पंचायत क्या, गांव-गांव, गली-गली ऐसे पम्पलेट व पोस्टर दीवारों पर चस्पे पड़े हैं, जिन पर महिलाओं से जबरदस्ती....जी हां जबरदस्ती हाथ जुड़वाकर उन्हें समाजसेविका, कर्मठ व ईमानदार सेविका बताकर वोट मांगने का जरिया बना लिया है। ...क्योंकि संविधान ने आरक्षण दिया है महिलाओं को, और ग्राम पंचायत की सीट आरक्षित हुई है महिला को! तो फिर घर की महिला के कंधे पर बंदूक रखकर चुनाव क्यों ना लड़ लिया जाए, क्योंकि राजनीति जिंदा रखनी है, पुरूष राजनीति?
जी हां, यह पुरूष राजनीति ही तो हैं, जहां महिला जीत भी जाती है तो हमारी ग्राम पंचायतों, तहसील, या राज्य सरकार की आयोजित बैठकों में महिला सरपंच की बजाय सरपंच प्रतिनिधि यानी की ‘पुरूष’ हिस्सा लेते हैं। महिला सरपंच को तो जीतने के बाद घर के चूल्हा-चैका से ही फुर्सत नहीं मिलती। ...और यह तस्वीर आज यही बता रही है कि देखो...हमने बिना किसी विरोध के एक सरपंच चुन लिया है, महिला सरपंच!
लेकिन ब्लाॅगवाणी के सच्चे पाठकों। देखो तस्वीर को, इसमें ‘महिला’ है कहां? ...आपसे सवाल के जवाब की उम्मीद रहेगी हमें। कब तक ‘कागजी अधिकारों’ के अधीन रखकर महिलाओं का शोषण करते रहेगें हम ?बेबाक रखिए अपनी बात ब्लाॅगवाणी पर। या हमें व्हाट्सअप करें - 9887243320 पर या ई मेल करें ktpvikas@gmail.com । कैसे भी, जैसे भी सुविधा हो अपने मन की बात यहां जरूर लिखें। लिखना सीखें...क्योंकि जब आप बदलेंगे तो ही देश बदलेगा। सच्ची तस्वीर के लिए एक बार फिर धन्यवाद, राजस्थान पत्रिका।
@vikas Verma
Shandaar👍👍👍
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