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वहशी दरिंदों के आगे बेबस बेटियां, बेबस सरकार...

यत्र नार्यस्तु पूज्यंते तत्र रमंते देवता अर्थात जहां पर नारियों की पूजा की जाती है वहां पर देवता निवास करते हैं। यह कहावत सतयुग से ही चली आ रही है और यह एक कहावत ही नहीं अपितु सतयुग, द्वापर युग, आदि यूगो से इस पर अमल भी किया जाता रहा है। उस समय नारियों का स्थान पुरुषों से ऊपर था। प्रत्येक कार्य उनसे पूछ कर किए जाते थे। लेकिन इस कलयुग में जैसा नाम वैसा काम के अनुसार घटनाएं घट रही हैं। हमारे देश में बेटियों को पढ़ाने व आगे बढ़ाने के लिए अनेक योजनाएं शुरू की जा चुकी है। जिनमें बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ, सुकन्या योजना, जननी सुरक्षा योजना आदि चलाई जा रही है। बेटियों को संबल प्रदान करने के लिए अनेकों योजनाएं शुरू करने के बाद भी आज उनकी स्थिति दयनीय व विचारनीय है। पढ़ाना व आगे बढ़ाना तो दूर, आज हमारी बेटियां कहीं पर भी सुरक्षित नहीं है।

पत्र - पत्रिकाओं में नित नई खबरें छपती रहती हैं। वहशी दरिंदे न तो उम्र देखते हैं, ना जात देखते हैं, ना समय देखते हैं, ना धर्म देखते हैं और ना ही रिश्ते देखते हैं। राह चलते आदमी से लेकर नेता, गुरु व व्यापारियों तक ने भी बालिकाओं को नहीं बख्शा। जिन्हें हम जनता के बीच से उठाकर हमारी रक्षार्थ संसद भवन में अपने हक में कानून बनाने के लिए बिठाते हैं, आज वही नेता बेटी के साथ बलात्कार हो जाने पर चुटकी लेते दिखाई पड़ते हैं। अक्सर देखा जाता है कि संसद की कार्यवाही के दौरान विधेयक चाहे स्त्रियों के हक में हो या न हो लेकिन विपक्षी दल का हंगामा करना अनिवार्य सा हो गया है। चाहे दल कोई सा भी क्यों न हो, सभी अपने वोट बढ़ाने की फिराक में रहते हैं। जलती आग में नेता लोग सिर्फ अपने हाथ सेकने के अलावा कुछ नहीं करते।

स्त्रियों की दशा इतनी चिंताजनक हो गई है कि जिनको वह अपना भगवान मानकर पूजा करती हैं, जिनके हर शब्द को भगवान का आदेश मानती हैं, उन्हीं ढोंगी बाबाओं ने भी उनको नहीं बख्शा। हाल ही में ऐसे अनेकों बाबाओं के खुलासे हुए हैं, जिनमें आसाराम, रामपाल, रामरहीम व दाती महाराज जैसे ऐसे बाबा हुए हैं जिन्होंने राम के नाम को ही नहीं अपितु पूरी सृष्टि को शर्मसार किया है। जहां लोग इनकी सेवा में अपनी बहू- बेटियों को भेजते हैं वही शिक्षा - दीक्षा के नाम पर उनको अपना शिकार बना लेते हैं।

आज हमारी बेटियां बाहर तो क्या घर में भी सुरक्षित नहीं दिखाई देती है। मीडिया जो इस विषय पर उनकी आवाज बुलंद कर सकता है, जब उनके कर्ता-धर्ता ही ऐसे कुकर्म करें तो आम आदमी क्या कर सकता है। हाल ही बिहार व यूपी कांड ऐसे ही उदाहरण है, जिनमें महिला आश्रम के रक्षक ही भक्षक बन गए हैं। देश में लड़कियों के खरीद फरोख्त के कारोबार- व्यापार से इनकार नहीं किया जा सकता। देश के बाल आश्रम, महिला आश्रम, व बाल सुधार गृह से लड़कियों के लापता होने की घटनाएं इसी और इशारा कर रही हैं। इन दरिंदों की राजनीति में भी इतनी गहरी पैठ हो गई है कि पुलिस महकमे से लेकर बड़े- बड़े राजनेता तक या तो इनसे डरते हैं, या फिर इनमें ही शामिल हो जाते हैं, घुल- मिल जाते हैं। सफेद कपड़ों के पीछे अपना मुंह काला किए फिरते हैं, हाईकोर्ट से इनकी जांच के आदेश आते हैं लेकिन निष्पक्षता से जांच करें कौन !
दोस्तों, मैं किसी दलित या अल्पसंख्यक की विरोधी नहीं हूं लेकिन दु:ख होता है कि देश में दलितों और अल्पसंख्यकों के नाम पर तो इतने सख्त कानून हैं कि अगर आपने उन्हें जातिसूचक शब्दों से भी संबोधित कर दिया तो भी आपको तुरंत प्रभाव से, बिना किसी जांच के गिरफ्तार कर लिया जाएगा। लेकिन महिलाओं एवं बेटियों के मामले में हमारी सरकार की सोच ऐसी नहीं है।


देश में औरतों के लिए कानून ही नहीं, अपितु उनका पालन भी सख्ती से करवाया जाए। बलात्कार के मामले में सुनवाई जल्द से जल्द की जाए तथा आरोपियों को 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार किया जाए। दोस्तों, अगर देश का हर नागरिक जागरूक होगा तथा औरतों की इज्जत करेगा तो ऐसी घटनाओं पर खुद ब खुद लगाम लग जाएगी। हमें हमारे देश में, हमारे आस- पड़ोस पर निगाह रखनी चाहिए और ऐसा कुछ गलत होने पर पुलिस को भी जांच में पूरा सहयोग करना चाहिए। अंत में बस इतना ही कहूंगी ‘हम स्वयं बदलेंगे, देश बदलेगा।’

एक बात और अगर इस आलेख को पढ़ने वाली आप महिला हैं तो आप से निवेदन है कि इस आलेख को ज्यादा से ज्यादा अपने WhatsApp, Facebook या अन्य ग्रुप में शेयर करें ताकि दूसरों को अपनी बात रखने की प्रेरणा मिले और सरकार महिलाओं के रक्षार्थ कोई कदम उठा सकें।

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आपकी दोस्त
  शालू वर्मा।

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