दोस्तों नमस्कार, ब्लॉगवाणी पर मैं शालू आपका स्वागत करती हूं। दोस्तों, कल रात मैं पुराने अखबारों को एक-एक कर देख रही थी, छांट रही थी कबाड़ी को रद्दी देने के लिए। इस दौरान जिस भी दिनांक का अखबार मेरे हाथ में आता गया ....कमोबेश सभी में... 3- 4 खबरें बलात्कार और महिला उत्पीड़न की थी। इनमें से कई खबरें तो अखबार के मेन पेज, व आखिरी पेज पर थी। ... देख- देख कर कलेजा बैठ सा गया।... क्या हो गया है देश को। क्या हैवानियत... दरिंदगी और हवस ही बस गई है मेरे देश के पुरुषों में !? छी... धिक्कार है... घिन्न आती है मुझे उन लोगों पर भी... जो नारी को 'पूजनीय' बताने की बात करते हैं, और ऐसी घटनाओं पर उनके मुंह पर डर की पट्टी बंधी रहती है। वैसे भी नारी कब थी पूजनीय! 'अपनी मां' के चरण स्पर्श कर लेने से नारी पूजनीय सार्थक नहीं हो जाता। ... अखबार समाचार चीख रहे हैं... 6 महीने की मासूम तक को नहीं बख्श रहे हैं दरिंदे... उफ...कहते और बात करते भी कलेजा बैठता हैं। देश के प्रधानमंत्री 'बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ' की बात करते हैं... लेकिन बेटियां ना कोख में बच रही हैं ना देश में।...