सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Meaning of love...चल प्यार करें...

चैटिंग से सिर्फ सैटिंग होती है, प्यार नहीं। क्योंकि प्यार में फीलिंग होती है, इमोसंस होते हैं, दर्द होता है, चाहत होती है। ...और प्यार दिल से होता है !!


चल प्यार करें...

प्यार यानी Love , आज इस शब्द के मायने क्या हैं? क्या प्यार का अर्थ (Meaning of love) वर्तमान में देह की चाहत, भूख, या हवस बन गया है ? अग़र नहीं, तो फिर ‘सुशांत’ जैसे नौजवान ‘शांत’ क्यों हो रहे हैं? क्यों ‘जिस्म’ में दौड़ता खून अपना रंग नहीं पहचान पा रहा है ? क्यों रिश्तों की डोर में ‘प्यार’ उलझता जा रहा है ?....अगर इन सब सवालों के जवाब आपके पास हैं तो बेशक आप इस आर्टिकल को बिना पढ़े यहीं छोड़ सकते हैं, लेकिन अग़र आपको इन सवालों का जवाब नहीं सूझ रहा है तो आपको यह आर्टिकल जरूर पढ़ना चाहिए। ...क्योंकि अखबारों में छपने वाली खबरें या कहानी ‘आपके घर की भी हो सकती है।’

चलिए अब इस Article की शुरूआत करते हैं। 👀

केस -1.

रविना की शादी को दो साल ही हुए थे, या यूं कहें कि जैसे तैसे रविना ने गुटखाबाज पति के साथ दो साल निकाल दिए थे। पति में सिवाय गुटखा खाने के कोई ऐब नहीं था। लेकिन रविना को शादी से पहले यह बात किसी ने नहीं बताई। ब्याह के आयी तो अगले दिन ही पति के मुंह को कचरादान की भांति गुटखे से भरा देखा। टोका-टाकी की, तो शुरूआत में तो पति मान गया, लेकिन शादी की तारीख के साथ-साथ रविना की टोका-टाकी और रविना भी पुरानी होती चली गई। रोज-रोज की झिकझिक में एक-दूसरे ने हाथ उठाना शुरू कर दिया। रविना बेचारी नाजुक शरीर, पति की मार कहां सहन कर पाती। लेकिन रविना जब भी कहीं पढ़ती कि गुटखा, तम्बाकू, खैनी खाने से कैंसर होता है तो मार भूलकर पति को फिर टोक देती। ...और पति के पास सिवाय रविना की ढंग से मरम्मत करने के कोई चारा नहीं था। यहां प्यार में रविना का नम्बर गुटखे के बाद था, यह अब तक रविना समझ चुकी थी। पड़ौस में रहने वाला दीपेन्द्र, रविना भाभी के साथ ऐसा होता देखकर बहुत दुखी होता था, और मौका मिलते ही भाभी को दुख प्रकट भी कर देता था। भाभी रविना भी खुलकर दीपेन्द्र से सुख दुख बतियाने लगी थी। ...और बातों ही बातों में कब दोनों की नजरें एक हो गई, रविना -दीपेन्द्र को पता ही नहीं चला। ...और एक दिन समय के साथ-साथ दोनों एक दूसरे की नजरों में इतने खो गए कि रविना के पति की नजरें भी उन्हें देख रही हैं, पता ही नहीं चला ! ...और फिर एक दिन तीनों अखबारों की सुर्खियों में थे। रविना के पति ने खुद को और दीपेन्द्र को खत्म कर लिया था, और रविना की नजरें अलमारी में पड़े गुटखे के पाउच पर अटकी पड़ी थी। 


केस- 2

सुपर्णा की शादी को चार साल बीत चुके थे, लेकिन सुपर्णा की हर रात पति के इंतजार में गुजर जाती थी। उधर परिवार के लोग परेशान थे कि कहीं बहु बांझ तो नहीं है। दादी की गोद पोता-पोती को लोरी सुनाने के लिए तरसी जा रही थी। लेकिन सुपर्णा का पति था कि दारू का गोदाम। सुबह से शाम और शाम से सुबह तक, जब आंख खुली...दारू। ससुर के पांव दबाते सुपर्णा रो देती थी, ससुर जी भी बहु को प्यार से सहला देते थे। कहीं कोई नजरों में खोट नहीं था, लेकिन पता नहीं कब सुपर्णा को ससुर के हाथ से शरीर में सिरहन पैदा होने लगी। एक दिन बहु-ससुर एक दूसरे की नजरों में गिर गए, और फिर दिन ब दिन गिरते चले गए। मौहल्ला शराबी बेटे को ताने मारने लगा तो उसने बाप को मार दिया। अखबारों के पन्नों पर रिश्ते चिथड़े-चिथड़े होकर बिखरे पड़े थे, और अखबार अपने ही खून से सना पड़ा था।


केस- 3 

श्रेया ने आत्महत्या की कौशिश की है। बेहोशी की हालत में अस्पताल में लायी गई है। वह दो बच्चों की मां है। कहती है बच्चे नहीं होते तो कब की मर जाती। पति को कोई और पसंद है, वहीं रहते हैं, घर भी नहीं आते हैं। खर्चा भी नहीं देते हैं, जो कमाकर लाते हैं, वहीं खर्च कर देते हैं। सास-ससुर मजदूरी करने नहीं देते और पढ़ी लिखी मैं हूं नहीं, जो नौकरी कर सकूं। कोई बताए, जिंदा भी रहूं तो किसके सहारे ? 

केस- 4

सुखवीर कर्जदार था जमींदार का। 5 लाख रूपऐ लिए थे, बड़ी बेटी की शादी में। अब ब्याज सहित 8 लाख बन गए। चोटी से ऐड़ी तक का पसीना बहाया, पर कर्ज ना उतार सका। बस, इसी का फायदा उठा लिया, जमींदार के बेटे मानवीर ने। सुखवीर की छोटी बेटी अभी 13 साल की थी, आठवीं में पढ़ती थी। उठा ले गया मानवीर अपने चार दोस्तों के साथ जंगल में। रात भर रखा और सुबह धर्मशाला के बिस्तर की तरह पटक गया सुखवीर के चाौक में। पांच दरिंदों ने रातभर कैसे-कैसे नहीं नोंचा बच्ची को! बिलखता सुखवीर पुलिस के संत्री से लेकर इलाके के मंत्री तक चक्कर लगा आया, सभी ने यही समझाया, चुप बैठ सुखवीर, अभी किसी को कोनो कान खबर नहीं है, बात फैल गई तो कोई ब्याह नहीं करेगा तेरी बेटी से। जमींदार ने भी 8 लाख माफ करने का वादा कर दिया। मीडिया तो पहले ही मुंह पर टेप लगा चुका था। सुखवीर के पास अब बेटी को लेकर दूसरे शहर में बसने के सिवा कोई चारा न था। 

दोस्तों, ये कहानियां मैं चाहे कितनी ही लिख दूं, इनका अंत नहीं है। क्योंकि ये सिर्फ कहानी नहीं, सच्चाई हैं। हर मौहल्ले और शहर की। आप मुझ पर शालीनता की हदें पार करने का आरोप ना मढ़ दें इसलिए कुछेक ऐसे पहलुओं को मैने जानबूझकर नहीं लिखा है। जहां पिता, चाचा, भाई, और मौसा ही रिश्तों की मर्यादा लांघकर आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं। वहीं ऐसी विवाहिताऐं भी हैं जो घरेलु हिंसा और दहेज प्रथा कानून की आड़ में परिवार को अपनी अंगुलियों पर नचा रही हैं। न जाने कितने ही परिवार ऐसे हैं जहां घर की बहुंऐं कानून का डर दिखाकर अपनी ख्वाहिशें पूरी करती हैं, तो वहीं ऐसे कुबेर के उपासक भी हैं जो धन ना मिलने पर बहु को भट्टी में झोंक देते हैं।

लेकिन इसके साथ ही एक कड़वा सच यह भी है कि भले ही परिवार जन इससे अन्जान बनते हों कि उनके बेटे -बेटी या बहू क्या करते हैं, इसका उन्हें कुछ पता नहीं होता। क्योंकि जो बात परिवालों को पता नहीं हो पाती, वह बात पूरा मौहल्ला जान चुका होता है।

सच्चाई यह भी है सोशल मीडिया के इस जमाने में नजरें मिलना जरूरी नहीं हैं, मोबाइल नम्बर मिलना ही काफी है। यहां प्यार बाद में पनपता है, दोस्ती पहले हो जाती है राखी के धागे फ्रेडशिप बैंड की जगह ले चुके हैं।...तो फिर अब घर-घर को मंथन की जरूरत है, नहीं तो फिर सर्च कीजिएगा, लव की परिभाषा...गूगल पर।। 👀❤

Chal Pyar GST Free hai...😍

Note:- सभी कहानियों में नाम व घटना काल्पनिक है, फिर भी अगर इसके किसी अंश का किसी से कोई सबंध होता भी है तो वह महज संयोग समझा जाए।

Pl. Like & Share.

दिल है कि मानता नहीं !!

पिता से थे पत्नी के अवैध संबंध, बेटे ने उठा दिया ऐसा कदम !

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

यह समय समय की नहीं, समझ- समझ की बात है...😎😀

*गुम हो गए संयुक्त परिवार* *एक वो दौर था* जब पति,  *अपनी भाभी को आवाज़ लगाकर*  घर आने की खबर अपनी पत्नी को देता था ।   पत्नी की *छनकती पायल और खनकते कंगन* बड़े उतावलेपन के साथ पति का स्वागत करते थे ।  बाऊजी की बातों का.. *”हाँ बाऊजी"*   *"जी बाऊजी"*' के अलावा दूसरा जवाब नही होता था । *आज बेटा बाप से बड़ा हो गया, रिश्तों का केवल नाम रह गया*  ये *"समय-समय"* की नही, *"समझ-समझ"* की बात है  बीवी से तो दूर, बड़ो के सामने, अपने बच्चों तक से बात नही करते थे  *आज बड़े बैठे रहते हैं हम सिर्फ बीवी* से बात करते हैं दादाजी के कंधे तो मानो, पोतों-पोतियों के लिए  आरक्षित होते थे, *काका* ही  *भतीजों के दोस्त हुआ करते थे ।* आज वही दादू - दादी   *वृद्धाश्रम* की पहचान है,   *चाचा - चाची* बस  *रिश्तेदारों की सूची का नाम है ।* बड़े पापा सभी का ख्याल रखते थे, अपने बेटे के लिए  जो खिलौना खरीदा वैसा ही खिलौना परिवार के सभी बच्चों के लिए लाते थे । *'ताऊजी'*  आज *सिर्फ पहचान* रह गए और,......   *छोटे के ...

कोई फ्री में दे तो क्या हम जहर भी खाने को तैयार हैं...

पढ़िए आज आपके स्वास्थ्य से जुड़ीे बड़ी कवरेज न्यूज चक्र पर...

'कॉकरोच' से डरती 'जिंदगी'

एक रेस्टोरेंट में अचानक ही एक कॉकरोच उड़ते हुए आया और एक महिला की कलाई पर बैठ गया। महिला भयभीत हो गयी और उछल-उछल कर चिल्लाने लगी…कॉकरोच…कॉकरोच… उसे इस तरह घबराया देख उसके साथ आये बाकी लोग भी पैनिक हो गए …इस आपाधापी में महिला ने एक बार तेजी से हाथ झटका और कॉकरोच उसकी कलाई से छटक कर उसके साथ ही आई एक दूसरी महिला के ऊपर जा गिरा। अब इस महिला के चिल्लाने की बारी थी…वो भी पहली महिला की तरह ही घबरा गयी और जोर-जोर से चिल्लाने लगी! दूर खड़ा वेटर ये सब देख रहा था, वह महिला की मदद के लिए उसके करीब पहुंचा कि तभी कॉकरोच उड़ कर उसी के कंधे पर जा बैठा। वेटर चुपचाप खड़ा रहा।  मानो उसे इससे कोई फर्क ही ना पड़ा, वह ध्यान से कॉकरोच की गतिविधियाँ देखने लगा और एक सही मौका देख कर उसने पास रखा नैपकिन पेपर उठाया और कॉकरोच को पकड़ कर बाहर फेंक दिया। मैं वहां बैठ कर कॉफ़ी पी रहा था और ये सब देखकर मेरे मन में एक सवाल आया….क्या उन महिलाओं के साथ जो कुछ भी हुआ उसके लिए वो कॉकरोच जिम्मेदार था? यदि हाँ, तो भला वो वेटर क्यों नहीं घबराया? बल्कि उसने तो बिना परेशान हुए पूरी सिचुएशन को पेर्फेक्ट्ली हैंडल किया। दरअसल, वो क...

कृपया फोलो/ Follow करें।

कुल पेज दृश्य